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________________ 95) (सुखी होने का उपाय __ इन ही कारणों से देव-शास्त्र-गुरु की श्रद्धा को सम्यग्दर्शन का निमित्त कहा गया है। . इसीप्रकार नव तत्त्वों की यथार्थ प्रतीति प्रगट हुये बिना किसी जीव को यथार्थ सम्यग्दर्शन प्राप्त नहीं हो सकता। इस ही कारण नवतत्वों की यथार्थ श्रद्धाको भी सम्यग्दर्शन का निमित्त कहा गया है। जिस आत्मार्थी को यथार्थ (निश्चय) सम्यग्दर्शन अर्थात् साक्षात् त्रिकाली ज्ञायकभाव में अहम्पना प्रगट होकर आत्मदर्शन प्राप्त हो गया हो, उसको भी आत्मज्ञता प्राप्त करने में आई कठिनाइयों का ज्ञान वर्तने के कारण, उन देव, शास्त्र, गुरु के प्रति भक्ति में सहज ही और ज्यादा प्रगाढ़ता आ जाती है एवं नव तत्त्वों की श्रद्धा एकदम पक्की प्रगाढ़ हो जाती है। जैसे-जैसे आत्मार्थी को सफलता प्राप्त होती जाती है, इन सब के प्रति उत्तरोत्तर वृद्धि ही होती जाती है, इसी कारण इनको सम्यग्दर्शन के सहचारी भी कहा गया है। ___ आत्माज्ञता प्राप्त जीव को जो यथार्थ श्रद्धा उत्पन्न हुई, वह निश्चय सम्यग्दर्शन है। उसके साथ ये नक्तत्त्व की श्रद्धा एवं देव-शास्त्र-गुरु की श्रद्धा निमित्त होने के साथ-साथ सहचारी भी बने रहते हैं। लेकिन बाद में तो वह निश्चय के साथ बना रहकर भी उसको बाधा नहीं पहुँचाता इसलिए इसको उस निश्चय सम्यग्दर्शन का व्यवहार कहा है, और इस व्यवहारसम्यग्दर्शन को भी सम्यग्दर्शन के नाम से कहा जाता है। हमारा लक्ष्य वीतरागता प्राप्त करने का है। यह व्यवहार सम्यग्दर्शन उसमें बाधक न होकर सहचारी बना रहता है। इसकारण इसको उपादेय भी कहा जाता है, लेकिन आत्मज्ञतारूप निश्चय सम्यग्दर्शन प्राप्त करने के मूल उद्देश्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001863
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size6 MB
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