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(सुखी होने का उपाय
"तथा अध्यात्म ग्रन्थों से कोई स्वच्छन्द हो, सो वह तो पहले भी मिथ्यादृष्टि था, अब भी मिथ्यादृष्टि ही रहा। इतना ही नुकसान होगा कि सुगति न होकर कुगति होगी। परन्तु अध्यात्म उपदेश न होने पर बहत जीवों के मोक्षमार्ग की प्राप्ति का अभाव होता है और इसमें बहुत जीवों का बहुत बुरा होता है, इसलिये अध्यात्म उपदेश का निषेध नहीं करना।*
इसप्रकार सम्यग्दर्शन प्राप्त करने में तत्त्वार्थश्रद्धान की उपयोगिता को भलीप्रकार समझना चाहिए। इन तत्त्वों का यथार्थ भाव समझने में यह जीव अनेक प्रकार की भूले करता है, उसके कारण उसकी अनादि से चली आ रही मिथ्या मान्यता दूर नहीं होती। मोक्षमार्गप्रकाशक ग्रंथ के निम्न पृष्ठों पर तत्त्वार्थश्रद्धान संबंधी भूलों को निकालने के लिए विशद विवेचन किया है।
पृष्ठ क्रमांक निम्नानुसार है - (१) पृष्ठ ७८ से ८४ तक (२) ८० से ८४ तक (३) २२४ से २३३ तक (४) ३१५ से ३१७ तक, (५) ३१८ से ३१९ तक (६) ३२० से ३२२ तक
आत्मार्थी जीव को उन सब कथनों को मनोयोगपूर्वक पढ़कर अपने को जिसप्रकार की भूल हो वह निकालकर यथार्थ मार्ग प्राप्त करने के लिये पुरुषार्थ करना चाहिये। ___ अतः "तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम्' सूत्र को मुख्य रखकर उक्त समस्त कथनों का विशेष रुचिपूर्वक अध्ययन करना
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