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________________ ८४] [ सुखी होने का उपाय समवायों में स्वभाव नाम का समवाय, त्रिकाली उपादान का सूचक है, तथा काललब्धि नाम का समवाय क्षणिक उपादानगत योग्यता का सूचक है। जैसे जिस क्षणिक उपादानरूप पर्याय की योग्यता जिस समय घोड़े को जानने की हो उस समय उसमें हाथी ज्ञेय नहीं बन सकेगा। दोनों प्रकार के उपादानों का अस्तित्व एकसाथ होने पर भी कार्य की सम्पन्नता में कारणपना तो क्षणिक उपादान को ही है और उसके कार्य का उपादेय कहा जावेगा। इस उपादेय का अर्थ “ग्रहण करने योग्य" यहाँ नहीं समझना। __ उपरोक्त ज्ञानपर्याय का निमित्त घोड़ा भी, उस समय का ज्ञेय बनने के लिये नहीं परिणमा है, उसको तो यह पता भी नहीं होता कि कोई उसको जान भी रहा है। वह तो अपनी उपादानगत योग्यतानुसार किसी के ज्ञान की अपेक्षा रखे बिना, अपने आप में आप ही परिणम रहा है, कोई जाने अथवा नहीं जाने । लेकिन घोड़े में प्रमेयत्वगुण होने के कारण उसको जो कोई भी जाने उसको जानने में निमित्त अवश्य बन जाता है अर्थात् कहलाता है। लेकिन कार्य की सम्पन्नता के समय दोनों की योग्यता परिणमन के अनुसार वे सहज ही कार्य अनुकूल और अनुरूप बने हुये दिखने लग जाते हैं। गोम्मटसार जीवकांड की गाथा ५८० से भी उपरोक्त विषय को समर्थन प्राप्त होता है।: निमित्त मात्रं तत्र, योग्यता वस्तुनि स्थिता। बहिर्निश्चय कालस्तु, निश्चितं तत्व दर्शिभिः ।। वस्तु में स्थित परिणमन रूप योग्यता ही कार्य का नियामक कारण है, जिसे अंतरंग निमित्त कहा है। निश्चय काल द्रव्य को बाह्य निमित्त कारण कहा है। इसप्रकार उस कार्य के सम्पन्न करने वाले भिन्न-भिन्न दो द्रव्य दिखने लगते हैं। ऐसी स्थिति में विवेकी पुरुष को तो अपने विवेक से उस कार्य के वास्वतिक कर्ता को ढूँढना पड़ेगा। तब स्पष्ट ज्ञात हो जावेगा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001862
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size7 MB
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