________________
७४]
। सुखी होने का उपाय अपनी-अपनी स्वाभाविक पर्यायों में ही निरन्तर परिणमन करते रहते हैं, किसी अन्य के परिणमन में हस्तक्षेप नहीं करते हैं।
उपरोक्त द्रव्यों में आपसी संबंध क्या और कैसे
प्रश्न :- ऊपर यह सिद्ध किया गया कि जीवद्रव्य का अन्य वस्तुओं के साथ मात्र ज्ञेय-ज्ञायक संबंध है, अन्य कुछ नहीं; लेकिन जिनवाणी में हर एक वस्तु का अन्य वस्तुओं के साथ-निमित्त-नैमित्तिक संबंध भी तो कहा है ? तथा ऊपर भी कहा गया है कि “गतिमान जीव पुद्गल को धर्मद्रव्य तथा गतिपूर्वक स्थिरता को प्राप्त अधर्मद्रव्य निमित्त कहा गया है। इसीप्रकार जीव को भी जाननक्रिया में जो ज्ञेय पड़ते हैं, वे आत्मा की जानन-क्रिया में निमित्त हैं। अत: निमित्त-नैमित्तिक संबंध समझना अत्यन्त आवश्यक एवं प्रयोजनभूत ज्ञात होता है।
समाधान :- सर्वप्रथम तो वस्तु व्यवस्था क्या है एवं विश्व व्यवस्था क्या है, यह सिद्धान्त, पठन, चिन्तन, मनन सत्समागत आदि के द्वारा स्पष्ट रूप से अपने ज्ञान और श्रद्धान अर्थात् विश्वास में बैठ जाना चाहिए। नि:शंकता पूर्वक समझे बिना जीव अपने प्रयोजन की सिद्धि नहीं कर सकता।
जिस जीव को नि:शंक श्रद्धा हो गई कि विश्व की हर एक वस्तुएँ अपनी-अपनी पर्याय में ही परिणमन कर सकती हैं, अन्य की पर्याय में कुछ कर ही नहीं सकती, क्योंकि हर एक द्रव्य का परिणमन तो अपने-अपने ही क्षेत्र अर्थात् प्रदेशों में होता है, अन्य के प्रदेशों में पहुँचेगा ही नहीं तथा स्पर्श भी नहीं करेगा तो कैसे उस द्रव्य की पर्याय में कुछ फेरफार कर सकेगा ? मान लो जिस समय पर की पर्याय में फेरफार करने जावे, उस समय वह द्रव्य अपनी पर्याय का उत्पाद नहीं करता होगा अथवा एक ही समय में, दो पर्यायें उत्पन्न करने लगेगा ? इस पर भी कोई कहे कि एकसमय दो पर्याय मान भी ली जाए तो क्या हानि है, लेकिन इसका तो
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org