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[ सुखी होने का उपाय
सम्बन्धित पंचेन्द्रियों के अनुकूल कारणों को ही जगत ने सुख का कारण एवं प्रतिकूल कारणों को ही दुःख का कारण माना है, जैसे :१. स्पर्शन :- शरीर को अनुकूल लगने वाले साधनों को, जैसे गरमी में ठंडक और सर्दी में गरमी एवं कामवासना जागृत होने पर उसकी पूर्ति के कारणों को जुटाने का एवं बाधक कारणों को हटाने का प्रयास करता है उस कामवासना की पूर्ति के साधन अपने शरीर को पुष्ट रखने के लिये खाद्य- अखाद्य, योग्य-अयोग्य उपायों को अपनाने से भी नहीं चूकता ।
२. रसना :- जिह्वा को अच्छे लगने वाले एवं शरीर को पुष्ट करने वाले अनेक प्रकार के व्यंजन आदि चाहे वे अनेक जीवों का घात करके भी तैयार किये जा सकें, जैसे- मांस आदि से तैयार किया गया भोजन । इसीप्रकार शास्त्र में वर्णित अनेक प्रकार के अभक्ष्य पदार्थों से तैयार किया गया, बहुत से स्थावरों के घात से तैयार किया गया एवं अनिष्टकारक भोजन, जैसे- अजीर्ण में मिष्टान्न, नशा उत्पन्न करने वाला एवं अनुपसेव्य - जो लोक में भी निषिद्ध होंग, ऐसे पदार्थों के द्वारा भी रसना इन्द्रिय को तृप्त करके भी उस इच्छा की पूर्ति के प्रयत्न में निरन्तर रत रहता है एवं उनकी पूर्ति का साधन इन इन्द्रियों एवं शरीर को मानकर उनको पुष्ट करने के प्रयासों में निरन्तर लगा रहता है ।
३. घ्राण :- नाक को अच्छे लगने वाले सुगंधित पदार्थों को जुटाने का एवं अच्छे नहीं लगने वाले पदार्थों को हटाने के प्रयास में लगा रहता है, जैसे इत्र, सेन्ट, क्रीम अनेक प्रकार के पाउडर आदि अनेक वस्तुएँ, उनके तैयार करने में चाहे कितने ही जीवों का निर्दयता से वध किया गया हो ।
४. चक्षु :- आँख को सुहावना लगने वाले साधनों जैसे- सिनेमा, टेलीविजन, वी.सी.आर आदि अनेक साधनों को इकट्ठा करके चक्षुइन्द्रिय को तृप्त करने का प्रयास करता रहता है । उनको प्राप्त करने के लिए
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