________________
Co
संदेह-दोलावली प्रश्न-समय पर मुख वस्त्रिका न पडिलेही गई हो तो उस से सामायिक प्रहण करना कल्पता है या नहीं ? मूल-अप्पडिलेहि य मुहणंतगे य, सामाइयं करिज्जा उ ।
अविहिकए पच्छित्तं, थोवं तेणं पडिक्कमइ ॥६४॥ अर्थ-अपडिलेही हुई मुहपत्ती से-उपलक्षण से आसन-पौषधशाल आदि अप्रतिलिखित हों तो-भी सामायिक-पौषध आदि किया जाता है। न करने से तो नियम भंग ही होता है, जो महा दोष का कारण है। अविधि से करने पर तो थोडा प्रायश्चित्त होता है, जो प्रतिक्रमण से निवृत्त हो सकता है।
प्रश्न-सामायिक ग्रहण करते हुए, सामायिक सूत्र उच्चारण के बाद तेजस्काय का स्पर्श हो जाय तो सामायिक का भंग होता है या नहीं ? मूल - सामायिक-सुत्तम्मि उच्चरिए कहवि होइ जइ फुसणं ।
तो तं आलोएज्जा, भंगो से नत्थि समाइए ॥६५॥ अर्थ–'करेमि भंते'--सामायिक सूत्र के उच्चारण करने पर किसी प्रकार से यदि अग्निकाय का स्पर्शन हो जाय तो उसके लिये इरियावही आलोचना करना करनी चाहिए। गुरूदत्त प्रायश्चित्त लेना चाहिए। ऐसा करने से उस स्पर्शन से सामायिक में भंग नहीं होता। __प्रश्न-पक्व अपक्व दो दलवाला अनाज गोरस से मिलने परसं मूच्छिमजीव वाला हो जाता हैं, वैसे ही पक्व अपक्व गोरस के साथ दो दलबाला अनाज खाना कल्पता है या नहीं? मल---उक्कालियम्मि तक्के, विदलक्खेवे वि नत्थि तदोसो ।
अतत्तगोरसम्मि, पडियं संसप्पए विदलं ॥६६॥ अर्थ-गरम किये हुए दही छाछ आदि गोरस में बेसन दाल आदि द्विदल अनाज के डालने से तजन्य-आहार में जीव विराधना रूप दोष नहीं होता है। कच्चे गोरस में द्विदल अनाज के डालने से जोव-संमूच्छिम सूक्ष्म त्रस जीव पैदा होते हैं। जैसा किकल्पभाव्य में फरमाया है-"आम गोरसुम्भीसं संसज्जए य अइरा तहवि हु नियमा दु दोसायत्ति”-अर्थात्-कच्चे गोरस में द्विदल मिलाने से जल्दी समुच्छिम जीव पैदा होते हैं। उससे स्वास्थ्य और संयम की विराधना रूप दो दोष पैदा करते हैं।
प्रश्न-अनेक रसवाली अनेक वस्तुओं को कढाई में तली जायँ तो वह विगय मान जायगी, या उत्कट द्रव्य ?
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org