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संदेह-दोलावली प्रश्न-उपवास आदि के करने पर बालक आदि का मुखचम्बन करते हुए प्रत्याख्यान भंग होता है या नहीं ? मूल-गब्भरूपप्पमुहाणं वयणं चुम्बइ कओपवासाई ।
तस्स उ पञ्चक्खाणे भगो संभक्इ जुत्तीए ॥५७|| अर्थ- उपवास आदि तप करने वाला व्यक्ति बच्चे आदिकों के मुखको चुमता है, तो उसके प्रत्यख्यान में युक्ति से भंगका सम्भव है। मूल-दहितरमझक्खित्तो गोहुम चुण्णोय पक्कविगई उ ।
सिद्धो लग्गइ नियमा तह वीसंदणमओ विगई ॥५८॥ अर्थ-गेहूं का आटा घो से भावितकिया हुआ दही की थर से सान कर वड़ों के रूप में घी की कडाही में पकाया हुआ भोजन विशेष नियम से पक्वान्न विषय में माणना चाहिए-विस्यन्दन को भी विगय ही समझना चाहिये।
प्रश्न-समायिक धारी विजली व दीपक के प्रकाशसे जब स्पृष्ट होता है और जब स्त्री से या तिथंचणी से संघट्टित होता है तब विजली के स्पर्श से दीए का स्पर्श और औरत के स्पर्श से तियंचणी का स्पर्श भिन्न है या अभिन्न ? मूल-विजयपईवेणं फुसिओ तं फुसणयं तओ हुजा ।
भिन्न भिन्नं नारीमंजारीणं च संघटणं ॥५९॥ अर्थ-विजली का प्रकाश और दीपक का प्रकाश सामायिकधारी के शरीर पर पडने से तेउकाय का स्पर्शन होता है। फिर भी दोनों का प्रायश्चित्त भिन्न २ है। उसी प्रकार स्त्री और बिल्ली के छुने से स्त्री स्पर्शन होता है। पर दोनों में बड़ा अन्तर है।
प्रश्न-जलमें भिजाने मात्र से धान्यको विरूहक कहते हैं या जिसमें भिग जाने के वाद अंकुरे फूट निकलते हैं उसको विरूहक कहते हैं ! मूल-पयडं कुरं तु धन्नं जलभिन्नं तं तु भण्णइ विरूढं ।
सेसं जलभिन्नं पि हु चणगाइ विरूढमवि न भवे ॥६॥ अर्थ-जलमें भिजाये हुए जिस धान्य में अंकुर प्रकट हो चुके हैं उसको विरूढ कहते हैं। बाकी का जलमें भिगोया हुआ चणा-आदि धान्य विरूढ भी नहीं होता।
प्रश्न-भुजे हुए विरूहक-भिगोए हुए सांकुर धान्य सचित्त होते है या अचित्त । यदि अचित्त हैं तो भी विरूहक ब्रती उसको खा सकता है, या नहीं ?
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