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________________ ७६ संदेह-दोलावली अर्थ-एक ही भाजन से लिया हुआ परन्तु इलायची-मुस्ता आदि जुदे २ द्रव्यों से वासित किया हुआ पानी जुदा जुदा द्रव्य होता है। क्योंकि वर्ण रस गंधादि भेद से द्रव्य भेद होना सिद्धान्त संमत है। प्रश्न-जुदे २ भाजनों में जुदे २ द्रव्यों द्वारा वासित एक ही स्थान का पानी जुदे २ द्रव्य रूप में माना गया यह ठीक परन्तु औषध करने वाले श्रावक या श्राविका वैसा पानी अपने २ घर से लाकर पौषध शाला में एक ही घडे में डाल दें बाद में वह पानी एकद्रव्य रहेगा या अनेक द्रव्य ? मूल-जइ पोसहसालाए सड्ढासड्डी वि पोसहम्मि ठिया । एगत्थ खिवंति भवे, तमेग दव्वं न संदेहो ॥५१॥ अर्थ-यदि पौषध शालामें श्रावक लोग या श्राविकाएँ पौषध में रहे हुए अपने २ घर से लाये हुए पानो को यदि किसी एक पात्र में डाल देते हैं तो वह सारा पानी एक द्रव्य हो जाता है इसमें कोई सन्देह नहीं है। प्रश्न-जिसने चार कोश तक जाने की अपने नियम में छूट रखी है, परन्तु वह एक कोश भी नहीं जाता, तो उसको कर्म बंध होता है या नहीं। क्योंकि सुना जाता है कि - कृतया एवं क्रिया कर्म बंध; न अकृतया-अर्थात् की हुई क्रिया से हो कर्म बंध होता विना किये नहीं होता। तो ठीक क्या समझना ? मूल-जेण दिसापरिमाणं कोसचउक्क दुगं च कयमित्थ । कोसद्धं पि न गच्छह तह विहु बंधो त्थ विरइओ ॥५२॥ अर्थ-जिसने दिशा परिमाण ब्रतमें चार कोश या दो कोश का क्षेत्र जाने आने को खुला रखा है और वह व्यक्ति कभी आधा कोश भी नहीं जाता है। तो भी उसके अविरति से पैदा होने वाला कर्म बंध होता ही है। क्रिया से कम बंध का उतना तालुक नहीं जितना कि परिणामों से। कर्म बंध में मिथ्यात्व अविरति कषाय और योग ये चार हेतु होते हैं। प्रश्न-मथा हुआ दही विथय है या उत्कट द्रव्य ? अगर विगय है तो कैसे भी उत्कट द्रव्य होता है, या नहीं ? अगर होता है, तो निविगय के पच्चक्खाण में कल्पना है, या नहीं ? मूल--जह गालियं च दहियं. तहावि विगई जलं न जं पडइ । पडिए वि जले तं तिव्वयंमि, विहिए न कप्पइ य ॥२३॥ अर्थ-- यदि दहि वस्त्रसे गाला गया हो और मथा गया हो तो भी विगय ही है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001859
Book TitleCharcharyadi Granth Sangrah
Original Sutra AuthorJinduttsuri
AuthorJinharisagarsuri
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages116
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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