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________________ चैत्यवन्दन-कुलकम् किसी और प्रकार से दुःखी हों उस हातलमें शक्तिके रहते उनका दुःख' मिटाये बिना भोजन भी नहीं करूंगा ॥२४॥ मूल-दम्माउ होणतरगं, जिणभवणे न साडगं दाहामि । अणुचियं नर्से गीयं च, रासयं आसणाई वि ॥२५॥ निट्ठीवणखिवणाई, सव्वं चासायणं न य करेमि । सजिण-जिणमंडवं ते कारणसुयणं च मुक्कलयं ॥२६॥ अर्थ-द्रम्म' नामक द्रव्य से कमती मूल्य में आना वाला कपड़ा जिन मंदिर में नहीं दूंगा। अनुचित नृत्य-गीत-रास गरबे आदि एवं अनुचित आसनादि नहीं करूंगा। थूक-खखार-नाकका मैल फकना आदि सब प्रकार की आसातना नहीं करूंगा। जहाँ जिनेश्वर देव की प्रतिमा विराजमास है ऐसे जिन मंडप में सोना भी निषिद्ध है। कारण विशेष होने पर सोना मोकला रखता हूँ। अर्थात् गाढ कारण होने पर सो सकंगा ॥२५-२६॥ मूल-नाणायरियाणमयंतराणि, सुत्तुत्तजुत्तिबज्झाणि । सोऊण कुसत्थाणि य, मन्नामि य दुक्खजणगाणि॥२७॥ १-विवायं कलहं चेव, सव्वाहा परिवजइ ।। साहाम्मिएहिं सद्धिं, तु जओ सुत्ते वियाहियं ॥१॥ जो किर पहरइ साहम्मियंमि, कोवेण दंसणमणम्मि ! आसायणं चो जो (सो) कुणइ, निकिवो लोगबंधणं ॥२॥ आणाय वहंतं जो उव दूहिज मोह दोषेण । तित्थयरस्स सेयस्स य, संघस्स य पच्चणीओ सो ॥३॥ साधर्मिकुलके नवांग वृत्तीकार श्री अभयदेव सूरी । सो आत्थोतं च सामत्थं, तं विन्नाण मणुत्तमं । साहम्मियाणा कज्जंमि, जं वच्चंति सुसावया ॥१॥ २- द्रम्माद् भीमप्रिय-विसलप्रिय-नामकात्-इति टीकाकारः । ३- खेलं केलि कालिं कला कुललयं तन्बोल मुग्गालयं, गाली कंगुलिया सरीरधुवणे केसे नहे लेहियं । भक्तोसं तय पित्त वंत दसणे विस्सामणं दामणं दंत त्थि नह गंड नासिय सिरो सुत्त छवर्णं मलम् ॥१॥ मंतं मीलण लीलयं विभजनं भण्डार दुट्ठासणं छाणी कप्पड दालि पप्पड वडी विस्सारणं नासणं । अकदं विकहं सरत्थघडणं तेरिच्छ संठावणं, अग्गीसेवणं रंधणं परिखणं निस्सीहियाभंजणं ॥२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001859
Book TitleCharcharyadi Granth Sangrah
Original Sutra AuthorJinduttsuri
AuthorJinharisagarsuri
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages116
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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