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________________ चैत्यवन्दन-कुलकम् अर्थ-सम्यक्त्व को स्वीकार करने पर श्रावक को बाहर व्रत पालन करने चाहिये । सब प्रकार के नियमों में मूलभूत पाँच अणुव्रत होते हैं। उनमें पहिला व्रत यह है किप्राणियों को ... चलते फिरते आंखों से दीखते स्थल जीवों को बिना कारण अपराधीको नहीं मारूंगा। दूसरा व्रत-मृषा भाषा-जिसके बोलने से उत्तम लोगों में निंदा हो, एवं राजा से दंडित हो एवं दूसरों का घात होता हो- ऐसी असत्य वाणो नहीं बोलँगा। तीसरा व्रतविना दिये हुए दूसरे के द्रव्य को नहीं लूगा अर्थात् चोरी नहीं करूंगा। चौथा व्रत-व स्त्री में संतोष रखते हुए पर स्त्री का संगभी नहीं करूंगा। पांचवां व्रत -- जरूरत से जादा अमित परिग्रह धन-धान्य-क्षेत्र आदि का संग्रह नहीं? रखूगा ॥२१।। मूल-बहुसावज्जं वाणिज्जमवि, सया तिव्बलोहओ न करे । __बहुलोयगरहणिज्जं, विज्जाइकम्मं पि वज्जेइ ॥२२॥ अर्थ-हमेशा तीव्र लोभ से अधिक पाप वाले व्यापार श्रावक को नहीं करने चाहिये । एवं बहु लोक गर्हणीय धोवी, चमार, नाई, आदि नीच जाति के काम भी नहीं करने चाहिये । अथवा-गर्भपातनादि बहु लोक गर्हणीय वैद्य-डाक्टर आदि के का भी नहीं करना चाहिये ॥२२॥ मल-रायनियोगाइगयं, खरकम्मं परिहरामि जहुसत्तिं । पवयणसाहम्मिणं, करेमि वच्छल्लम विगप्पं ॥२३॥ अर्थ-राजा आदि की नौकरी में रहते हुए भी कठोर कर्म को यथाशक्ति छोड़ना चाहिये । एवं जैन प्रवचन-शासन को समान रूप से मानने वाले साधर्मि बन्धुओं के प्रति तन मन धन से वात्सल्य अवि-कल्प-भेदभाव के बिना करना चाहिये। इसके लिये भी श्रावक को अभिग्रह रखना चाहिये ॥२३॥ ___ साधर्मिकों के साथ कैसे बरतना चाहिये यह बताते हैंमूल-तेहिं समं न विरोहं करोमि न च धरणगादि कलहं पि। सीयंतेसु न तेसिं सइ विरिए भोयणं काहं ॥२४॥ अर्थ-उन साधर्मी वंधुओं के साथ कदापि विरोध नहीं करूंगा धरणा'-डिग्रीजप्ती आदि लड़ाई झगड़े भी उनके साथ नहीं करूंगा। साधर्मिक लोग तन-धन से या १-श्रावक इन पांच अणुव्रतों की रक्षा के लिए ३ गुण व्रत, और.४ शिक्षा व्रत रखते हैं । श्रावक के बारह व्रत होते हैं । जिज्ञासु अन्यत्र से जानें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001859
Book TitleCharcharyadi Granth Sangrah
Original Sutra AuthorJinduttsuri
AuthorJinharisagarsuri
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages116
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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