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________________ अनेक प्रकार से शासन प्रभावना करने वाले वज्रस्वामी को, समस्त कुटुम्बी आदि जन समुदाय को बोध देनेवाले आर्य रक्षितसूरि को एवं आर्यनन्दि गुरु को वन्दन करो, एवं हे मनुष्यों! आर्य नागहस्तीहरि को स्मारण में लाओ ॥६॥ रेवयसामि सूरि खंडिल्ल, जिणि उम्मूलिय भवदुहसल्ल । हेमवंतु झायहु बहुभत्ति, तरहु जेम भवसायरु झत्ति ॥ १० ॥ रेवत स्वामी ( रेवति मित्र सूरि ) सूरि खंडिल (सांडिल्याचार्य) कि-जिन्होंने भवदुःख के शल्य को जड़से उखाड़ दिया है, एवं हिमवन्त सूरि, इन सब का बहुत भक्तिसे वैसा ध्यान धरो जिससे भवसमुद्र को जल्दी तर जाओ ॥ १० ॥ नागऽज्जोयसूरि गोविंद, भूइदिन्न लोहिच्च मुणिंद । दुसमसूरि उम्मासयसामि, तह जिणभद्दसूरि पणमामि ॥ ११॥ अर्य नागसुरि, गोविन्द वाचक, भूतदिन्नाचार्य, लौहित्याचार्य मुनीन्द्र, दुःषमसूरि; उम्मासय स्वामी ( उमास्वाति वाचक) तथा जिनभद्र ( गणिक्षमाश्रमण ) सूरि को प्रणाम करता हूं ॥ ११ ॥ सिरिहरिभद्दसूरि मुणिनाहु, देवभदसूरिव जुगबाहु । नेमिचंद चंदुजलकित्ति, उज्जोयणसुरि कंचणदित्ति ॥ १२ ॥ मुनियों के नाथ श्रीहरिभद्र सुरि एवं अपने युगमें बाहु ( भुजा ) समान श्रीदेवभद्र सूरिवर और चन्द्रसम उज्ज्वल कीर्ति वाले नेमिचन्द्र सूरि, कञ्चन के सदृश दीप्ति (कांति) वाले उद्योतन सूरि हुए ।। १२ ।। पयडिय सूरिमंतमाहप्पु, रूवि झाणि निज्जियकंदप्पु । कुंदुज्जलजसभुसियभवणु, सलहहु वद्धमाणसुरिग्यणु ॥ १३ ॥ जिन्होंने सूरिमन्त्र का माहात्म्य प्रगट किया है, रूप व ध्यान से कन्दर्प (कामदेव) को जीतलिया है, कुन्दके फूल के समान उज्ज्वल यशसे समग्र भुवन (लोक ) को भूषित किया है, उन सूरिरत्न श्रीवर्द्धमानसूरिजी की प्रशंसा करो । १३ ॥ अणहिलपुरि दुल्लहअत्थाणि, जिणेसरसूरि सिद्धंतु वखाणि । चउरासी आयरिय जिणेवि, लिउ जसु वसहिमग्गु पयडेवि ॥ १४ ॥ उनके शिष्य आचार्य श्रीजिनेश्वरसूरि हुए कि-जिन्होंने अणहिलपुर पाटण में दुर्लभ राजाकी सभा में सिद्धान्तके सत्यार्थ प्रकाशन द्वारा चौरासी ( गच्छ के चैयवासी) आचार्यों को जीतकर वसति वास के मार्ग को खुला कर के यश प्राप्त किया था ॥ १४ ॥ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001859
Book TitleCharcharyadi Granth Sangrah
Original Sutra AuthorJinduttsuri
AuthorJinharisagarsuri
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages116
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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