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तीर्थङ्कर महावीर संरक्षितानि कोष्ठागुतानि), बाँस की बनी डाल में हों ('पल्लाउत्ताणं' त्ति इह पल्यो-वंशादिमयो धान्याधारविशेषः) मचान पर हों, मकान के ऊपर के भाग में हों ( 'मंचाउत्ताणं मालाउत्ताणं' मित्यत्र मञ्चमालयोर्भेदः "अक्कुड्ड होइ मंचो, य घरोवरि होति"-अभित्तिको मञ्चो मालश्च गृहोपरि भवति) अंदर रख कर द्वार पर गोबर से लीप दिया गया हो ('ओलित्ताणं' ति द्वारदेशे पिधानेन सह गोमयादिनाऽवलिप्तानाम् ), रखकर पूरा गोबर से लीप दिया गया हो ('लित्ताणं' तिसर्वतो गोमयादिनैव लिप्तानां), रखकर ढंक दिया गया हो ('पिहियाणं' ति स्थगितानां तथा विधाच्छादनेन ), मुद्रित कर दिया गया हो ( 'मुद्दियाणं' ति मृत्तिकादि मुद्रावतां), लांछित कर दिया गया हो ('लंछियाणं' ति रेखादि कृत लाञ्छनानां) तो उनमें अंकुरोत्पत्ति की हेतुभूत शक्ति कितने समय तक कायम रहेगी ?" .. भगवान्-“हे गौतम ! उनकी योनि कम-से-कम एक अन्तर्मुहूर्त तक कायम रहती है और अधिक-से-अधिक तीन वर्ष तक कायम रहती है । उसके बाद उनकी योनि म्लान हो जाती है, प्रतिध्वंस हो जाती है
और वह बीज अबीज हो जाता है । उसके बाद, हे श्रमणायुष्मन् ! उसकी उत्पादन-शक्तिव्युच्छेद हुई कही जाती है।" ___ गौतम- "हे भन्ते ! कलाय', मसूर, मूंग, उड़द, निष्फाव', कलत्थी, आलिसंदर्ग, अरहर, गोल काला चना ये धान्य पूर्वोक्त विशेषण वाले हों तो उनकी योनि-शक्ति कितने समय तक कायम रहेगी।"
१-'कलाय' त्तिकलाया वृत्तचनकाः इत्यन्ये-भगवतीसूत्र सटीक, पत्र ४६६ २-निफाव' न्ति वल्ला:- भगवतीसूत्र सटीक, पत्र ४६६ एक प्रकारकी दाल
३–'आलिसन्दग' त्ति चंवलक प्रकाराः, चवलका एवान्ये-भगवतीसूत्र सटीक पत्र ४६६
४-'सईण' त्ति तुवरी-भगवती सूत्र सटीक, पत्र ४१६ ५-'पलिमंथग' त्ति वृत्तचनकाः काल चनका इत्यन्ये-भगवतीसूत्र सटीक,
पत्र ४९९
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