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१६-वाँ वर्षावास धान्यों की अंकुरोत्पत्ति-शक्ति
वर्षावास बीतने के पश्चात् भगवान् ने वाणिज्यग्राम से मगध-देश को ओर विहार किया और ग्रामानुग्राम रुकते हुए तथा धर्मोपदेश देते हुए राजगृह के गुणशिलक-चैत्य में पधारे । राजा आदि उनका धर्मोपदेश सुनने गये। __इस अवसर पर गौतम स्वामी ने भगवान् से पूछा- "हे भगवन् ! शालि', व्रीहि', गोधूम (गेहूँ), यव और यवयव धान्य यदि कोठले में हों ( 'कोहाउत्ताणं' त्ति कोष्ठे-कुशूले, आगुप्तानि-तत्प्रेक्षेपणेन संरक्षणेन
१-'सालीणं' ति कलमादीनां-भगवतीसूत्र सटीक शतक ६, उ० ७ पत्र ४६६ । 'कलम' का अर्थ करते हुए 'आप्टेज संस्कृत-इंग्लिश-डिक्शनरी, भाग १, पृष्ठ ५४५ पर लिखा है कि यह चावल मई-जून में बोया जाता है तथा दिसम्बरजनवरी में तैयार होता है। श्रीमद्वालमीकीय रामायण, किष्किन्धाकांड, सर्ग १४, श्लोक १५ में आता है
प्रसूतं कलमं क्षेत्रे वर्षेणेव शतक्रतुः' (पृष्ट ३४२)
अभिधान-चिन्तामणि सटीक भूमिकाण्ड, श्लोक २३५ पष्ठ ४७१ में शालि और कलम समानार्थी बताये गये हैं । वहाँ आता है :
शालयः कलमाद्यासुः कलमस्तु कलामकः ।
लोहितो रक्तशालिः स्याद् महा शालि सुगन्धिकः ॥ २- 'व्रीहि' ति सामान्यतः-भगवतीसूत्र सटीक, पत्र ४६६ । साधारण धान
३-'जवजवाणं' ति यवविशेषणाम्-भगवतीसूत्र सटीक पत्र ४६६, अमोलक ऋषि ने इसका अर्थ ज्वार लिखा है ( भगवती सूत्र, पत्र ८२२)
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