________________
३२
तीर्थकर महावीर
ही नहीं, चक्षुइन्द्रिय से स्पर्श इन्द्रिय तक पाँचों इन्द्रियों का वशीभूत
जीव संसार में भ्रमता है ।"
भगवान् के उत्तर से सन्तुष्ट होकर जयन्ती ने प्रव्रज्या ले ली ।
सुमनोभद्र और सुप्रतिष्ठ की दीक्षा
वहाँ से ग्रामानुग्राम विहार करते हुए भगवान् श्रावस्ती आये । इसी. अवसर पर सुमनोभद्र और सुप्रतिष्ठ ने दीक्षा ली ।
सुमनोभद्र ने वर्षों तक साधु-धर्म का पालन किया और विपुल पर्वत ( राजगृह ) पर मुक्ति प्राप्त की ।
सुप्रतिष्ठ ने २७ वर्षों तक साधु-धर्म पाल कर विपुल पर्वत ( राजगृह ) पर मोक्ष प्राप्त किया । ३
आनन्द का श्रावक होना
वहाँ से ग्रामानुग्राम विहार कर भगवान् वाणिज्य ग्राम गये । वहाँ आनन्द-नामक गृहपति ने श्रावकक-धर्म स्वीकार किया । उसका विस्तृत वर्णन हमने मुख्य श्रावकों के प्रसंग में किया है । भगवान् ने अपना चातुर्मास वाणिज्यग्राम में बिताया ।
१- पंच इंदियत्था पं० तं० – सोर्तिदियत्थे जाव फासिदियत्थे
-ठाणांगसूत्र, ठाणा ५, उद्देशः ३, सूत्र ४४३ पत्र ३३४-२ इन्द्रियों के विषय पाँच हैं:- १ श्रोत्रेन्द्रिय का विषय - शब्द, २ चक्षुरिन्द्रिय का विषय रूप, ३ घ्राणेन्द्रिय का विषय गन्ध, ४ जिह्वेन्द्रिय का विषय रस और स्पर्शनेन्द्रिय का विषय स्पर्श ।
२ - भगवतीसूत्र सटीक, शतक १२, उद्देशः २, पत्र १०२० -१०२८ ।
३ - अन्तगढ श्रणुत्तरोववाइयदसाओ ( एन्० वी० वैद्य - सम्पादित ) पृष्ठ ३४
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org