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________________ जयन्ती की प्रत्रज्या ३१ भगवान्-"कुछ जीवों की सबलता अच्छी है, और कुछ जीवों की दुर्बलता अच्छी है ।" ___ जयन्ती-“हे भगवन् ! यह आप कैसे कहते हैं कि, कुछ जीवों की दुर्बलता अच्छी है और कुछ की सबलता ?" भगवान् - "हे जयन्ती ! जो जीव अधार्मिक हैं और जो अधर्म से जीविकोपार्जन करते हैं, उन जीवों के लिए दुर्बलता अच्छी है । जो यह दुर्बल हो तो दुःख का कारण नहीं बनता। __ "जो जीव धार्मिक है उसका सबल होना अच्छा है। इसीलिए मैं कहता हूँ कि कुछ की दुर्बलता अच्छी है, कुछ को सबलता !" जयन्ती- "हे भगवन् ! जीवों का दक्ष और उद्यमी होना अच्छा है या आलसी होना ?" भगवान्-"कुछ जीवों का उद्यमी होना अच्छा है और कुछ का आलसी होना ।" जयन्ती--"हे भगवन् ! यह आप कैसे कहते हैं कि कुछ का उद्यमी होना अच्छा है और कुछ का आलसी होना ?" भगवान्--"जो जीव अधार्मिक है और अधर्मानुसार विचरण करता है उसका आलसी होना अच्छा है । जो जीव धर्माचरण करते हैं उनका उद्यमी होना अच्छा है; क्योंकि धर्मपरायण जीव सावधान होता है, तो वह आचार्य, उपाध्याय, स्थविर, तपस्वी, ग्लान ( रुग्ण), शैक्ष, गण, संघ और सधार्मिक का बड़ा वैयावृत्य ( सेवा-सुश्रुषा) करता है ।' ___ जयन्ती- "हे भगवान् ! श्रोत्रेन्द्रिय के वशीभूत पीड़ित जोव क्या कर्म बाँधता है ?" - भगवान्-"क्रोध के वश में हुए के सम्बन्ध में मैं बता चुका हूँ कि वह संसार में भ्रमण करता है। इसी प्रकार श्रोत्रेन्द्रिय के वशीभूत जीव Jain Education International For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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