________________
३०
तीर्थंकर महावीर
काढता काढता अनन्त उत्सर्पिणी तथा अवसर्पिणी व्यतीत कर दे; पर फिर भी वह श्रेणी खाली नहीं होने की, इसी प्रकार, हे जयन्ती, भवसिद्धक जीवों के सिद्ध होने पर भी यहाँ संसार भवसिद्धकों से खाली नहीं होने का ।"
जयन्ती — "सोता हुआ अच्छा है या जागता हुआ अच्छा है ?"
भगवान् - "कितने जीवों का सोना अच्छा है और कितने जीवों का जागना अच्छा है ।"
जयन्ती - "यह आप कैसे कहते हैं कि, कितने जीवों का सोना अच्छा दे और कितने जीवों का जागना अच्छा है ?”
भगवान् — “हे जयन्ती ! जो जीव अधार्मिक है, अधर्म का अनुसरण करता है, अधर्म जिसे प्रिय है, अधर्म कहनेवाला है, अधर्म का देखनेवाला है, अधर्म में आसक्त है, अधर्माचरण करनेवाला है, अधर्मयुक्त जिसका आचरण है, उसका सोना अच्छा है । ऐसा जीव जब सोता रहता है तो बहुत से प्राणों के, भूतों के, जीवों के, और सत्त्वों के शोक और परिताप का कारण नहीं बनता । जो ऐसा जीव सोता हो, तो उसकी अपनी और दूसरों की बहुत-सी अधार्मिक संयोजना नहीं होती । इसलिए ऐसे जीवों का सोना अच्छा है ।
"और, हे जयन्ती ! जो जीव धार्मिक और धर्मानुसारी हैं तथा धर्मयुक्त जिसका आचरण है, ऐसे जीवों का जागना ही अच्छा है । जो ऐसा जीव जागता है तो बहुत-से प्राणियों के अदुःख और अपरिताप के लिए कार्य करता है । जो ऐसा जीव जागता हो तो अपना और अन्य लोगों के लिए धार्मिक संयोजना का कारण बनता है । ऐसे जीव का जागता रहना अच्छा है ।
" इसीलिए मैं कहता हूँ कि कुछ जीवों का सोता रहना अच्छा है और कुछ का जागता रहना ।”
जयन्ती — “भगवन् ! जीवों की दुर्बलता अच्छी है या सबलता ?”
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org