________________
जयन्ती की प्रव्रज्या
२६
भगवान् - " प्राणातिपात से लेकर मिथ्यादर्शन के अटकाव से जीव
इल्केपने को प्राप्त होता है । इस प्राणातिपात जीव संसार को बढ़ाता है, लम्बा करता है, प्रकार प्राणातिपात आदि की निवृत्ति से वह करता है और उलंघन कर जाता है ।" "
आदि करने से जिस प्रकार भ्रमता है, उसी घटाता है, छोटय
जयन्ती - "भगवन् ! मोक्ष प्राप्त करने की योग्यता जीव को स्वभाव से प्राप्त होती है या परिणाम से ?"
भगवान् - "मोक्ष प्राप्त करने की योग्यता स्वभाव से है, परिणाम से नहीं ।"
जयन्ती - "क्या सब भवसिद्ध मोक्षगामी हैं ?" भगवान् — “हाँ! जो भवसिद्धक हैं, वे सब मोक्षगामी हैं ।"
जयन्ती -- "भगवन् ! यदि सब भवसिद्धक जीवों की मुक्ति हो जायेगी, तो क्या यह संसार भवसिद्धक जीवों से रहित हो जायेगा ?”
संसार में संसार को
भगवान् — “हे जयन्ती, ऐसा तुम क्यों कहती हो ? जैसे सर्वाकाश की श्रेणी हो, वह आदि अनन्त हो, वह दोनों ओर से परिमित और दूसरी श्रेणियों से परिवृत हो, उसमें समय-समय पर एक परमाणु पुद्गल खंड
१- इसका पूरा पाठ भगवतीसूत्र सटीक शतक १, उद्देशः ६, सूत्र ७३ पत्र १६७ में आता है । उस सूत्र के अन्त में ( पत्र १६८ ) पाठ आता है:
पसत्या चत्तारि अपसत्था चत्तारि
अर्थात् चार १ हलकापन, २ और ४ संसार का उलंघन करना भारीपन २ संसारपने को बढ़ाना, भ्रमना अप्रशस्त हैं; क्योंकि वे
Jain Education International
इसकी टीका करते हुए अभयदेव सूरि ने लिखा है: - 'पसत्या चत्तारि चि लघुत्वपरीतत्वहस्वत्वव्यतित्रजनदंडकाः प्रशस्ताः मोक्षङ्गत्वात्, 'अपसत्था चचारि ' ति गुरुत्वाकुलत्व दीर्घत्वानुपरिवर्त्तन दण्डकाः अप्रशस्ता श्रमोक्षाङ्ग त्वादिति
संसार का घटाना, ३ प्रशस्त है; क्योंकि वे ३ संसार का लम्बा अमोक्ष के अंग हैं ।
--c
संसार का छोटा करना मोक्ष के अंग हैं और १ करना और ४ संसार में
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org