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________________ १५-वाँ वर्षावास जयन्ती की प्रव्रज्या वैशाली से विहार करके भगवान् महावीर वत्स-देश की ओर गये । वत्स-देश की राजधानी कौशाम्बी थी। वहाँ चन्द्रावतरण नामका चैत्य था। उस समय कौशाम्बी-नगरी में राजा सहस्रनीक का पौत्र, शतानीक' का पुत्र, वैशाली के राजा चेटक की पुत्री मृगावती देवी का पुत्र उदयन -नामक राजा राज्य करता था। उदयन की बूआ (शतानीक की बहन ) जयन्ती श्रमणोपासिका थी। भगवान् के आगमन का समाचार सुनकर मृगावती अपने पुत्र उदयन के साथ भगवान् का वन्दन करने आयी। भगवान् ने धर्मदेशना दी। भगवान् का धर्मापदेश सुनने के बाद जयन्ती ने भगवान् से पूछा"भगवन् ! जीव गुरुत्व को कैसे प्राप्त होता है ?" । भगवान् ने कहा-“हे जयन्ती, १ प्राणातिपात, २ मृपावाद, ३ अदत्ता दान, ४ मैथुन, ५ परिग्रह, ६ क्रोध, ७ मान, ८ माया, ९ लोभ, १० प्रेम, ११ द्वेष, १२ कलह, १३ दोषारोपण, १४ चाड़ी-चुगली, १५ रति और अरति, १६ अन्य की निन्दा, १७ कपट पूर्वक मिथ्या भाषण, १८ मिथ्यादर्शन अठारह दोष हैं । इनके सेवन से जीव भारीपने को प्रात होता है । और चारों गतियों में भटकता है।" जवन्ती-"भगवान् , आत्मा लघुपने को कैसे प्राप्त होती है ?' १-वितृत विवरण राजाओं के प्रसंग में देखिये। २-विस्तृत विवरण राजाओं के प्रसंग में देखिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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