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________________ तीर्थकर महावीर ग्राप से निकल ब्राह्मणकुण्ड की ओर जा रहा है। उस भीड़ को देख कर उसके मन विचार उठा कि क्या आज कोई उत्सव है । उसने कंचुकि को बुलाकर कारण पूछा तो उसे भगवान् के आने की बात ज्ञात हुई। जमालि पूरी तैयारी के साथ भगवान् का दर्शन करने ब्राह्मणकुण्ड' की ओर चल पड़ा । बहुशालचैत्य के निकट पहुँच कर उसने रथ के घोड़े को रोक दिया और रथ से उतर कर पुष्प, ताम्बूल, आयुध, उपानह आदि को वहीं छोड़ कर भगवान् के पास आया । वहाँ आकर उसने तीन बार प्रदक्षिणा की और उनका बन्दन किया । उसके बाद भगवान् ने धर्म-देशना दी। धर्म-देशना सुन कर जमालि बड़ा प्रसन्न हुआ और बोला-'हे भगवन् ! मैं निर्गन्थ-प्रवचन पर श्रद्धा रखता हूँ। मुझे उस पर विश्वास है । मैं तद्रूप आचरण करने को तैयार हूँ। अपने माता-पिता की अनुमति लेकर मैं साधु-व्रत लेना चाहता हूँ।" ऐसा कहकर पुनः उसने भगवान् को तीन बार प्रदक्षिणा की और वंदना की। वहाँ से लौट कर वह अपने घर क्षत्रियकुण्ड आया और अपने मातापिता के पास जाकर उसने दीक्षा लेने की अनुज्ञा माँगी। माता-पिता ने. १-त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र पर्व १०, सर्ग ८ श्लोक २८-२६ पत्र १००-१ में हेमचन्द्राचार्य ने तथा महाबीरचरियं प्रस्ताव ८ पत्रा २६०-२ श्लोक १-२ में गुणचन्द्र ने भगवान् महावीर का क्षत्रियकुंड आना लिखा है और वहाँ जमालि के दीक्षा प्रसंग का उल्लेख किया है; पर भगवती सूत्र से इसका मेल नहीं बैठता। त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र पर्व १०, सर्ग ८, श्लोक ३० पा १००-१ में उस समय उनके समवसरण में क्षत्रियकुंड में राजा, भगवान् के सांसारिक बड़े भाई नन्दिवर्द्धन के आने और भगवान् की बंदना करने का उल्लेख है : स्वामिनं समवस्मृतं नृपतिर्नन्दिवद्धन : ऋद्ध्या महत्या भक्त्या च तत्रोपेयाय वन्दितुम् ॥ ऐसा ही उल्लेख गुणचन्द्र-रचित 'महावीरचारियं' में प्रस्ताव = पर्व २६१-१ तथा २६१-२ में भी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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