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तीर्थङ्कर महावीर ____ अंत में ऋषभदत्त ने भगवान् महावीर के पास जाकर दीक्षा लेने की अनुमति माँगी। फिर, ऋषभदत्त ईशान दिशा में गया। वहाँ आभरण, माला, अलंकार आदि सब उतार कर उसने पंच मुष्टि लोच किया और प्रभु के निकट आकर तीन बार प्रदक्षिणा की और प्रव्रज्या ले ली।
उसने सामायिक आदि तथा ११ अंगों का अध्ययन किया। छहअहम-दशम आदि अनेक उपवास किये और विचित्र तप-कर्मों से बहुत वर्षों तक आत्मा को भावित करता हुआ साधु-जीवन व्यतीत करता रहा अंत में एक मास की संलेखना करके ६० बेला का अनशन किया और मर कर मोक्ष प्राप्त किया।
उसी समय देवानन्दा ब्राह्मणी ने भी दीक्षा ले ली और आर्यचन्दना के साथ रहने लगी। उसने भी सामायिक आदि तथा ११ अंगों का अध्ययन किया तथा विभिन्न तपस्याएँ की। अंत में वह भी सर्व दुःखों से मुक्त हुई।'
जमालि की प्रव्रज्या ब्राह्मणकुंड के पश्चिम में क्षत्रियकुंड-नामक नगर था। उस ग्राम में जमालि-नामक राजकुमार रहता था। यह जमालि भगवान् की बहन सुदंसणा' का पुत्र था-ऐसा उल्लेख कितने ही जैन-शास्त्रों में आता है ।
(१) इहैव भरत क्षेत्रे कुण्डपुरं नामं नगरम् । तत्र भगवतः श्री महावीरस्य भागिनेयो जामालि म राजपुत्र आलीत्...
-सटीक विशेषावश्यक भाष्य, पत्र ६३५ १-भगवती सूत्र सटीक, शतक ६. उद्देशा ६, पत्र ८३७-८४५ । यह कथा त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र पर्व १०, सर्ग ८ श्लोक १-२७ पत्र ६६-१-११-२ में तथा गुणचन्द्र रचित महावीरचरियं, अष्टम् प्रस्ताव, पत्र २५५-१--२६०-१ में भी आती है। २-भगिणी सुदंसणा'..
-कल्पसूत्र सुबोधिका टीका, सत्र १०६, पत्र २६१
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