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________________ H ऋषभदत्त-देवानन्दा की प्रव्रज्या ब्राह्मणी मेरी माता है । मैं इस देवानंदा ब्राह्मणी का पुत्र हूँ । पुत्रस्नेह के कारण देवानन्दा रोमांचित हुई।' तब तक भगवान् के गर्भपरिवर्तन की बात किसी को भी ज्ञात नहीं थी। भगवान् के इस कथन पर ऋषभदत्त-देवानन्दा सहित पूरी पर्षदा को आश्चर्य हुआ। भगवान् महावीर ने ऋषभदत्त ब्राह्मण, देवानन्दा ब्राह्मणी तथा उपस्थित विशाल पर्षदा को धर्मदेशना दी। उसके बाद लोग वापस चले गये । १- (अ) भगवती सूत्र सटीक में इसका उल्लेख इस प्रकार है : गो यमा ! देवाणंदा माहणी ममं अम्मगा, अहं णं देवाणंदाए माहणीए अत्तए, तए णं सा देवाणंदा माहणी तेणं पुच्च पुत्तसिहेणरागेणं आगयपणहया जाव समूसवियरोमक्खा...' -शतक ६, उद्देशः ६, सूत्र ३८१, पत्र ८४० इसकी टीका इस प्रकार दी हैं : प्रथम गर्भाधान काल सम्भवो यः पुत्रस्नेह लक्षणोऽनुरागः स पूर्व पुत्रस्नेहानुरागस्तेन -~-पत्र ८४५ (श्रा ) त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र पर्व १०, सर्ग ८ में इससे अधिक स्पष्ट रूप में वर्णन है : अथाख्यद्भगवान् वीरो गिरा स्तनितधीरया । देवानां प्रिय भो देवानन्दायाः कुक्षिजोऽस्म्यहम् ॥१०॥ दिवश्चयुतोऽहमुषितः कुक्षावस्या द्वयशीत्यहम् । अज्ञात परमार्थापि तेनैषा वत्सला मयि ॥११॥ -पत्र ६६-१ २-(अ) देवानन्दर्षभदत्तौ मुमुदाते निशम्य तत् । सर्वा विसिप्मिये पर्षत्तागपूर्विणी ॥१२॥ –त्रिषष्टि शलाका परुष चरित्र, पर्व १०, सर्ग ८, पत्र ६६-" अस्सुयपुब्वे सुणिए को वा नो विम्हयं वहइ ॥२॥ __-महावीर-चरियं, गुणचन्द्र-रचित, पत्र २५६-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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