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तीर्थङ्कर महावीर
का त्याग, २ वस्त्रों को व्यवस्थित मर्यादा में रखना, ३ दुपट्टे का उत्तरा संग करना, ४ दोनों हाथ जोड़ना, ५ मनोवृत्तियों को एकाग्र करना ] वह भगवान् के पास गया। तीन बार उनकी परिक्रमा करके, उसने भगवान् का वंदना की और देशना सुनने बैठा ! वंदन करने के बाद देवानन्दा भी बैठी। उस समय वह रोमांचित हो गयी और उसके स्तन से दूध की धारा बह निकली । उसके दोनों नेत्रों में आनन्दाश्रु आ गये !
उस समय गौतम स्वामी ने भगवान् की वंदना करके पूछा - "हे भगवान् ! देवानंदा रोमांचित क्यों हो गयी ? उसके स्तन से क्यों दूध की धारा वह निकली ?"
इसके उत्तर में भगवान् महावीर ने कहा- " हे गौतम ? देवानंदा
( पृष्ठ २१ की पादटिप्पणि का शेषांश )
पंच विहेणं अभिगमेणं श्रभिगच्छन्ति तं जहा - सचित्ताणं दव्वाणं विसरण्याए १, अचित्ताणं दव्वाणं अविसरण्याए २, एगसाडिए उत्तरासंगकरणं ३ चक्खुप्फासे अंजलिप्पगहेणं ४ मणसो एगत्ती करणेणं ५........
'सच्चित्ताणं' त्ति पुष्पताम्बूलादीनां 'विउसरण्याए' त्ति 'व्यवसर्जनया" त्यागेन १, 'अच्चित्ताणं' ति वस्त्रमुद्रिकादीनाम् 'अविउसरण्याए' त्ति अत्यागेनर, ' एगसाडिएणं' ति अनेकोत्तरीय शाटकानां निषेधार्थमुक्तम् 'उत्तरासंग करणेन ' त्ति उत्तरासङ्ग उत्तरीयस्य देहे न्यासविशेषः ३, 'चक्षुः स्पर्पः' दृष्टिपाते 'एगतीकरणेन' ४ चि अनेक त्वस्य अनेकालम्बन त्वस्यएकत्व करणम् - एकालम्बनत्व करण मेकत्रीकरणं तेन ५......
इन अभिगमों का विस्तृत वर्णन धर्मसंग्रह ( गुजराती भाषान्तर, भाग १, पृष्ठ ३७१-३७२ ) में है ।
पपातिकसूत्र सटीक सूत्र १२, पत्र ४४ में राजा के भगवान् के पास जाने का उल्लेख है । जब राजा भगवान् के पास जाता है तो वह पंच राजचिह्न का भी त्याग करता है : -खग्गं १, छत्तं २, उप्फेस ३, वाहणाओ ४, वालवी अणं ५, ( २ खङ्ग, २ छत्र, ३ मुकुट, ४ वाहन, ५ चामर ) ।
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