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ऋषभदत्त-देवानन्दा की प्रव्रज्या २१ कुंडग्गामे नयरे उसमदत्ते नामं माहणे परिवसति अढे दित्ते वित्ते जाव अपरिभूए रिउवेद, जजुवेद, सामवेद अथव्वणवेद जहाँ खंदओ जाव अन्नेसु य बहुसु बभन्नएसु नएसु सुपरिनि?ए समणोवासए.....
भगवतीसूत्र के इस उद्धरण से स्पष्ट है कि, जहाँ वह चारों वेदों आदि का पंडित था, वहीं वह 'श्रावक' भी था। कल्पसूत्र आदि तथा भगवतीसूत्र के पाठ की तुलना से यह स्पष्ट ध्वनि निकलती है कि, वह ऋषभदत्त बाद में श्रमणोपासक हो गया था।
इस ऋषभदत्त की पत्नी देवानंदा थी।
भगवान् के आने की सूचना समस्त ग्राम में फैल गयी। सूचना पाते ही, ऋषभदत्त अपनी पत्नी देवानंदा के साथ भगवान् का वंदन करने चला। . जब ऋषभदत्त भगवान् महावीर स्वामी के निकट पहुँचा तो वह पाँच अभिगमों ( मर्यादा) से युक्त होकर [१ सचित्त वस्तुओं
( पृष्ठ २० की पादटिप्पणि का शेषांश) 'उज्नाणे' कर दिया है। स्थानकवासी साधु अमोलक ऋषि ने जो भगवती छपवायी थी उसमें पत्र १३३४ पर 'चेइए' ही पाठ है और उसके आगे वर्णक जोड़ने को लिखा है । स्थानकासी विद्वान शतावधानी जैनमुनि रत्नचन्द्र जी ने भी अर्द्धमागधी कोष, भाग २, पृष्ठ ७३८ पर 'चेइए' शब्द में 'बहुसाल चेइए' दिया है।
भगवती के प्रारम्भ में ही राजगृह के गुणशिलक चैत्य, का उल्लेख है। वहाँ वर्णक जोड़ने की बात नहीं कही गयी है । चैत्य के वर्णक का पूरा पाठ औपपातिकसूत्र सटीक सूत्र २ ( पत्र ८ ) में आता है। अतः यहाँ बहुसाल चैत्य के प्रसंग में उसका अर्थ उद्यान कदापि नहीं हो सकता।
पुष्प भिक्खु ने ऐसे और कितने ही अनधिकार परिवर्तन पाठ में किये हैं ।
१. भगवतीसूत्र, शतक ६, उद्देशः ६, सूत्र ३८० पत्र ८४० में पाँच अभिगमों क़ा उल्लेख है । उसका पूरा पाठ भगवती सूत्र शतक २, उद्देशः ५ सूत्र १०८ (सटीक पत्र २४२) में इस प्रकार है :
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