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१४-वाँ वर्षावास ऋषिभदत्त-देवानन्दा की प्रव्रज्या
वर्षावास समाप्त होने के बाद, अपने परिवार के साथ ग्रामानुग्राम में विहार करते हुए, भगवान् महावीर ने विदेह की ओर प्रस्थान किया और ब्राह्मणकुण्ड ग्राम पहुँचे, इसके निकट ही बहुशाल-चैत्य था । भगवान् अपनी परिषदा के साथ इसी बहुशाल्य चैत्य में ठहरे ।
इसी ग्राम में, ऋषभदत्त-नाम का ब्राह्मण रहता था। उसका उल्लेख हम 'तीर्थंकर महावीर' ( भाग १, पृष्ठ १०२) में गर्भपरिवर्तन के प्रसंग में कर आये हैं। आचारांग सूत्र (बाबू धनपत सिंह वाला, द्वितीय श्रतस्कंध, पृष्ठ २४३ ) में तथा कल्पसूत्र सुबोधिका-टीका सहित, सूत्र ७ (पत्र ३२) में उसका ब्राह्मण होना लिखा है। केवल इतना ही उल्लेख आवश्यक चूर्णि (पूर्वार्द्ध, पत्र २३६ ) में भी है । पर, भगवतीसूत्र सटीक ( शतक ९, उद्देशः ६, सूत्र ३८० पत्र ८३७ ) में उसका उल्लेख इस प्रकार किया गया है :
तेणं कालेणं तेणं समएणं माहणकुण्डग्गामे नयरे होत्था, वन्नो, बहुसालए चेतिए, वन्नओ, तत्थ णं माहण
१. इस ब्राह्मणकुण्ड ग्राम की स्थिति के सम्बन्ध में हमने 'तीर्थकर महावीर' भाग १, पृष्ठ ६०-८६ पर विषद् रूप से विचार किया हैं। जिज्ञासु पाठक वहाँ देख सकते हैं। राजेन्द्राभिधान भाग ६, पृष्ठ २६८ तथा पाइप्रसद्दमहएणवो, पृष्ठ ८५३ में उसे मगध देश में बताया गया है। यह वस्तुत उन कोषकारों की भूल है ।
२. पुप्फ भिक्खु ( फूलचन्द जी )-सम्पादित 'जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला' भाग २ ( भगवई--विवाह पण्णत्ती ) पृष्ठ ५९३ पर सम्पादकने 'चेतिये' पाठ बदल कर
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