________________
૧૩
तीर्थङ्कर महावीर
देखकर तुम तीसरे मंडल में गये । वहाँ खड़े-खड़े तुम्हारे शरीर में खुजली हुई । खुजली मिटाने के विचार से तुमने एक पैर ऊपर उठाया । प्राणियों के आधिक्य के कारण एक शशक तुम्हारे पाँव के नीचे आकर खड़ा हो गया | पग रखने से शशक दबकर मर जायेगा, इस विचार से तुम में दया उत्पन्न हुई और तुम तीन पाँव पर खड़े रहे ।
"ढाई दिन में दावानल शांत हुई । शशक आदि सभी प्राणी अपनेअपने स्थान पर चले गये । क्षुधा से पीड़ित तुम पानी पीने के लिए बढ़े । अधिक देर तक एक पग ऊँचा किये रहने से, तुम्हारा चौथा पैर बँध गया था । इससे तीन पैर से चलने में तुम्हें कठिनाई हो रही थी । चल न सकने के कारण, तुम भूमि पर गिर पड़े और प्यास के कारण तीसरे दिन बाद तुम मृत्यु को प्राप्त हुए ।
" शशक पर की गयी दया के कारण, तुम मर कर राजपुत्र हुए । इस • प्रकार मनुष्य-भव प्राप्त करने पर तुम उसे वृथा क्यों गँवाते हो ।”
भगवान् महावीर का वचन सुनकर मेघकुमार अपने व्रत में पुनः स्थिर हो गया । उसने नाना तप किये और मृत्यु पाकर विजय नामक अणुत्तर विमान में उत्पन्न हुआ । वहाँ से महाविदेह में जन्म लेने के बाद वह मोक्ष प्राप्त करेगा ।
१. - त्रिषष्टिशला कापुरुषचरित्र पर्व १०, सर्ग ६, श्लोक ३६२-४०६, पत्र ८३२ से ८५-१ । - विजये १,
--
२ – उड्ड लोगे णं पंच अणुत्तरा महतिमहालता पं० तं विजयंते २ जयंते ३, अपराजिते ४, सब्बट्ठसिद्धे ५ ।
Jain Education International
- ठाणांगसूत्र सटीक, ठा०५, उ०३, सू० ४५१ पत्र ३४१-२
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org