________________
मेघकुमार की प्रव्रज्या पात्रादि मँगा दें।" श्रेणिक ने समस्त व्यवस्था कर दी और फिर बड़े धूमधाम से मेघकुमार ने दीक्षा ग्रहण की।
मेघकुमार की अस्थिरता दीक्षा लेने के बाद मेघकुमार मुनि रात को बड़े-छोटे साधुओं के क्रम से शैया पर लेटे थे, तो आते-जाते मुनियों के चरण बार-बार उसे स्पर्श होते । इस पर उसे विचार हुआ, मैं वैभव वाला व्यक्ति हूँ फिर भी ये मुनि मुझे चरण स्पर्श कराते जाते हैं । कल प्रातःकाल प्रभु की आज्ञा लेकर मैं व्रत छोड़ दूंगा।" यह विचार करते-करते उसने बड़ी कठिनाई से रात्रि व्यतीत की । प्रातःकाल व्रत छोड़ने की इच्छा से वह भगवान् के पास गया । उसके मन की बात, अपने केवल ज्ञान से जानकर, भगवान् बोले- "हे मेघकुमार ! संयम के भार से भग्न चित्त वाला होने पर तुम अपने पूर्व भव पर ध्यान क्यों नहीं देते ?
मेषकुमार के पूर्वभव "इस भव से पूर्व तीसरे भव में वैताब्य्-गिरि पर तुम मेरु-नामक हाथी थे । एक बार बन में आग लगी। प्यास से व्याकुल होकर तुम सरोवर में पानी पीने गये । वहाँ तुम दलदल में फँस गये। तुम्हें निर्बल देखकर, शत्रु हाथियों ने तुम पर दाँतों से प्रहार किया। दंत-प्रहार से सात दिनों तक पीड़ा सहन करने के बाद, मृत्युको प्राप्त करके तुम विन्ध्याचल में हाथी हुए । वहाँ भी वन में आग लगी देखकर तुम्हें जातिस्मरणज्ञान होने से, तृण वृक्ष आदि का उन्मूलन करके; यूथ की रक्षा के लिए, नदी के किनारे तुमने तीन मंडल (घेरे) बना दिये। अन्य अवसर पर दावानल लगी देखकर, तुम स्व-निर्मित मंडल की ओर दौड़े। पर, प्रथम मंडल में मृगादि पशुओं के आ जाने से वह भर गया था। तुम दूसरे मण्डल की ओर गये । पर, वह भी भरा था । दो मण्डलों को पूर्ण
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org