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सूक्ति-माला
६७६ -हे प्राणी ! अपनी आत्मा के साथ ही युद्ध कर । बाहरी युद्ध करने से क्या मतलब ? दुष्ट आत्मा के समान युद्ध योग्य दूसरी वस्तु दुर्लभ है।
तुमंसि नाम सच्चेव जं हतब्बं ति मन्नसि, तुमंसि नाम सच्चेव जं अज्जावेयव्वं ति मन्नसि । तुमंसि नास सच्चेव जं परियावेयचं ति मन्नसि तुमंसि नाम सच्चेव ज परिधित्तव्यं ति मन्नसि । तुमंसि नाम सच्चेव जं उद्दवेयव्वं ति मन्नसि, अंजू चेय पडिबुद्धिजीवी तम्हा न हंता न वि घायए अणुसंवेयणमप्पाणेणं जं हंतवं नाभि पत्थए ।
पत्र २०४-१ -हे पुरुष ! जिसे तू मारने की इच्छा करता है, वह तेरे ही जैसा सुख-दुःख का अनुभव करनेवाला प्राणी है; जिस पर हुकूमत करने की इच्छा करता है, विचार कर वह तेरे जैसा ही प्राणी है, जिसे दुःख देने का विचार करता है, वह तेरे जैसा ही प्राणी है, जिसे अपने वश में रखने की इच्छा करता है, विचार कर वह तेरे जैसा ही प्राणी है, जिसके प्राण लेने की इच्छा करता है-विचार कर वह तेरे जैसा ही प्राणी है।
सत्पुरुष इसी तरह विवेक रखता हुआ, जीवन बिताता है और न किसी को मारता है और न किसी का घात करता है।
जो हिंसा करता है, उसका फल वैसा ही पीछे भोगना पड़ता है, अतः वह किसी भी प्राणी की हिंसा करने की कामना न करें।
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