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भक्त राजे
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और, काशिराज ( नंदन बल्देव ), विजय, महाबल आदि के तथा कुछ अन्य चरित्र भी संजय को बताये ।
काम्पिल्य
इस काम्पिल्य का उल्लेख जैन ग्रन्थों में दस राजधानियों में किया गया है ।
जम्बूदोके भरहवासे दस रायहाणिश्रो पं० तं० - चंपा १, महुरा २, वाणारसी ३, य सावत्थी ४ तहत सातेतं ५, हत्थिणाउर ६ कंपिल्लं ७, मिहिला ८, कोसंबि ६, रायगिह -ठाणांगसूत्र, ठाणा १०, उद्देशः ३, सूत्र ७१९, पत्र ४७७-२ यह आर्य-क्षेत्र में था और पांचाल की राजधानी थी । विविधतीर्थकल्प में जिनप्रभ सूरि ने काम्पिल्य के सम्बन्ध में कहा है :
अस्थि इहेव जंबुद्दीवे दक्खिण भारह खंडे पुवदिसाए पंचाला नाम जणव । तत्थ गंगानाम महानई तरंगभंगपक्खालिजमाण पायारभित्तिश्रं कंपिल्लपुरं नाम नयरं
( पृष्ठ ५० ) इसी कंपिलपुर का राजा संजय था । इसका भी उल्लेख विविधतीर्थकल्प में है :
इत्थ संजयो नाम राया हुत्था । सो अ पारद्धीए गये केसरुजाणे मिए हए पासंति तत्थ गद्दभालिं ऋणगारं पासिन्ता संविग्गो पव्वइत्ता सुगई पत्तो ।
इस नगर का नाम संस्कृत ग्रंथों में काम्पिल और बौद्ध ग्रंथों में कम्पिल्ल मिलता है | रामायण आदिकांड सर्ग ३३ श्लोक १०, पृष्ठ ३७ में इस नगर को इन्द्र के वासस्थान के समान सुन्दर बताया गया है । महाभारत १. - उत्तराध्ययन नेमिचन्द्र की टीका सहित अध्ययन १८, पत्र २२८-१-२५९-२
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