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तीर्थकर महावीर पास महान् संवेग और निर्वेद को प्राप्त हो गया । और, राज्य को छोड़कर गर्दभालि-अनागार के पास जाकर जिन-शासन में दीक्षित हो गया।
इस प्रकार दीक्षित हो जाने के बाद संजय को एक दिन एक क्षत्रियसाधु मिला और उसने संजय से कहा--"जिस प्रकार तुम्हारा रूप बाहर से प्रसन्न दिखता है, उसी प्रकार तुम्हारा मन भी प्रसन्न प्रतीत होता है । तुम्हारा नाम क्या है ? तुम्हारा गोत्र क्या है ? किसलिए माहण ( साधु ) हुए हो ? किस प्रकार तुम बुद्धों की परिचर्या करते हो? तुम किस प्रकार विनयवान कहे जाते हो ?' ___इन प्रश्नों को सुनकर उसने कहा--"मेरा नाम संजय है और मैं गौतम गोत्र का हूँ । गर्दभालि मेरे आचार्य हैं। वे विद्या और चरित्र के पारगामी हैं ।"
संजय के इस उत्तर को सुन कर उस क्षत्रिय-साधु ने क्रियावाद, अक्रियावाद, विनयवाद और अज्ञानवाद के सम्बन्ध में संजय को उपदेश किया और बताया कि विद्या और चरित्र से युक्त, सत्यवादी, सत्य पराक्रमवाले बुद्ध ज्ञातृपुत्र श्री महावीर स्वामी ने किस प्रकार इन तत्त्वों को प्रकट किया है।
इस प्रकार उपदेश देते हुए उस क्षत्रिय ने अपनी पूर्वभव की कथा बतायी और चक्रवर्तियों' की कथाएँ बतायीं। दशार्णभद्र, नमि, करकंडू, द्विमुख, नग्गति (चार प्रत्येक बुद्ध) के प्रसंग कहे कि किस प्रकार संयम को पालकर वे मोक्ष गये ।
उस मुनि ने संजय को सिंधु-सौवीर के राजा उद्रायन का भी चरित्र सुनाया।
१-टीका में यहाँ भरत चक्रवर्ती, सगर चक्रवर्ती, मघवा चक्रवर्ती, सनत्कुमार चक्रवर्ती, शांतिनाथ चक्रवर्ती, कुंथुनाथ चक्रवर्ती, अर चक्रवर्ती, महापद्म चक्रवर्ती, हरिषेण चक्रवर्ती, जय चक्रवर्ती, की विस्तार से कथा आती है।
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