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भक्त राजे
६५६ नाट्य विधि चोपदर्शयामास, यत्र च प्रदेशिराज चरितं भगवता प्रत्यपादीति'..
इस राजा का उल्लेख रायपसेणी सुत्त में बड़े विस्तार से आता है।
एक समय भगवान् श्रमण महावीर आमलकप्पा नगरी में आये। उस समय आमलकप्पा नगरी में स्थान-स्थान पर शृंगाटक ( सिंघाडग), त्रिक ( तिय ), चतुष्क (चउक्क), चत्वर (चच्चर), चतुर्मुख (चउम्मुह), महापथ ( महापह ) पर बहुत-से लोग, यह कहते सुने गये कि, हे देवानुप्रियो ! आकाशगत छत्र इत्यादि के साथ संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए, भगवान् महावीर यहाँ आये हैं। भगवंत का नाम-गोत्र भी कान में पड़ने से महा फल होता है। उनके पास जाने से, उनकी वंदना करने से, उनके पास जाकर शंकाएं मिटाने से, पर्युपासना-सेवा का अवसर मिले तो बड़ा फल मिलता है।
भगवान् महावीर के आने का समाचार सुनकर उग्र, उग्रपुत्र, भोग, भोगपुत्र, राजन्य, राजन्यपुत्र, क्षत्रिय, क्षत्रियपुत्र, भट, भटपुत्र, योद्धा, योद्वापुत्र, प्रशस्ता, लिच्छिवि, लिच्छिविपुत्र, और अन्य बहुत से मांडलिक राजा, युवराज, राजमान्य अन्य बहुत से अधिकारी जहाँ भगवान् थे वहाँ जाने के लिए निकल पड़े।
१-स्थानांग सूत्र सटीक, स्थान ८, सूत्र ६२१ पत्र ४३१-१ । रायपसेणी में आता है।
[तत्थ णं आमलकप्पाए नयरीए ] सेश्रो राया [...] धारिणी [नामं ] देवी...'
पत्र २३-२७ ।
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