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________________ ६५४ तीर्थङ्कर महावीर १८ महादुमसेण, १९ सीह, २० सीहसेण, २१ महासीहसेण, २२ पुण्णसेण, २५ मेह इनमें से अधिकांश श्रेणिक के जीवन-काल में ही उसकी अनुमति लेकर साधु हुए। इन पुत्रों के अतिरिक्त उसकी कितनी ही रानियाँ भी साध्वी हुई थीं । इससे भी स्पष्ट है कि वह किस धर्म का मानने वाला था। जिनेश्वरसूरि-कृत कथाकोष में उसके सम्बंध में आया है 'जिण सासणाणुरत्तो अहेसि आवश्यकचूर्णि पूर्वाद्ध पत्र ४९५ में आता है कि, श्रोणिक सोने के १०८ यव से नित्यप्रति चैत्य की अर्चना करता था। श्रेणिक का अंत साधारणतः इतिहासकार यही मानते हैं कि कूणिक ने श्रोणिक को मार डाला और स्वयं गद्दी पर बैठ गया। पर, जैन-ग्रन्थों में इससे भिन्न कथा है। जब तक अभयकुमार साधु नहीं हुआ था और प्रधानमंत्री था, तब तक कुणिक की एक नहीं चली । अभयकुमार के साधु होने के बाद कणिक को खुलकर अपना खेल खेलने का अवसर मिला । उसने काली आदि अपने दस भाइयों को यह कहकर मिला लिया कि, यदि मुझे राज्य करने का अवसर मिले तो मैं इस राज्य का उचित अंश तुम सभी को बाँट दूंगा। १-वही, द्वितीय वग्ग, पृष्ठ ६९-७० २-नायाधम्मकहा अध्ययन १ ३-कथाकोश प्रकरण, पृष्ठ १०४ (सिंधी जैन ग्रंथमाला) ४-सेणियस्स अट्ठसतं सोवरिणयाण जवाण करेति चेतियअच्चणितानिमित्तं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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