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भक्त राजे कोसंबो नाम नयरी, पुराण पुरभेयणी। .. तत्थ श्रासो पिया मझ पभूयधणसंचओ ॥'
-कौशाम्बी-नामा अति प्राचीन नगरी में प्रभूतसंचय नाम वाले मेरे पिता निवास करते थे।
डाक्टर मुखर्जी ने इस कथन की ओर किंचित् मात्र ध्यान नहीं दिया अन्यथा उनसे यह भूल न हुई होती।
अनाथी मुनि के अतिरिक्त श्रेणिक पर चेल्लणा का भी प्रभाव कुछ कम नहीं पड़ा। वह यावज्जीवन श्रेणिक को जैन-धर्म की ओर आकृष्ट करती रही।
इसके अतिरिक्त महावीर स्वामी से जीवन-पर्यंत श्रेणिक का जैसा सम्बंध था और जिस रूप में वह महावीर स्वामी के पास जाता था उससे भी स्पष्ट है कि उसका धर्म क्या है। महावीर स्वामी के सम्पर्क में पहली बार आते ही वह अवृत्ति सम्यक् दृष्टि श्रावक बन गया।
श्रोणिक के बहुत से निम्नलिखित पुत्र जैन-साधु हो गये थे :
१ जाली, २ मयाली, ३ उववाली, ४ पुरिससेण, ५ वारिसेण, ६ दीहदंत, ७ लहदंत, ८ वेहल्ल, ९ वेहायस, १० अभयकुमार, ११ दीहसेण, १२ महासेण, १३ गूढ़दंत, १४ सुद्धदंत, १५ हल्ल, १६ दुम, १७ दुमसेण
१-उत्तराध्ययन नेमिचन्द्र की टीका, अध्ययन २०, गाथा १८, पत्र २६८-२ ___ २–त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र पर्व १०, सर्ग ६, श्लोक ३७६ पत्र ८४२
३-अणुत्तरोववाइयदसाओ, पढम वग्ग ( मोदी-सम्पादित) पृष्ठ ६५-६९
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