SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 718
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६५० तीर्थंकर महावीर राजगृहे नगराद् बहिः क्रीडार्थ मण्डित कुक्षि वने -राजेन्द्राभिधान, भाग ६, पृष्ठ २३ । जैन और बौद्ध दोनों सूत्रों से स्पष्ट है कि, यह वन राजगृह से कुछ दूरी पर था । 'मंडि' का संस्कृत रूप मंडित होता है। मंडित का अर्थ हुआ'सजाया हुआ-भूषित ( वृहत् हिन्दी कोष, प्रथम संस्करण, पृष्ठ ९९१ ) और कुक्षि का अर्थ हुआ किसी वस्तु का आन्तरिक भाग ( इण्टीरियर आव एनी थिंग आप्टेज संस्कृत-इंग्लिश-डिक्शनरी, भाग १, पृष्ठ ५७७ ) अतः मंडिकुक्षि का अर्थ हुआ कि जिसके अंदर का भाग रमणीक हो । इस मंडिकुक्षि में श्रोणिक विहार-यात्रा के लिए गया था। इस 'विहार-यात्रा' को टीका नेमिचन्द्रजी ने इस प्रकार की है : "विहार यात्रा' क्रीडार्थश्व वाहनिकादि रूपया जाल काटियर ने स्वसम्पादित उत्तराध्ययन में 'विहार-यात्रा' का अर्थ 'प्लेजर एक्सकरशन' अथवा 'हंटिंग एक्सपिडिशन दिया है। पर, उत्तराध्ययन की किसी भी टीका में 'विहार-यात्रा' का अर्थ 'शिकारयात्रा' नहीं दिया है । और, किसी कोष में भी उसका यह अर्थ नहीं मिलता । हम यहाँ इसके कुछ प्रमाण दे रहे हैं : १-विहार यात्रा-ए प्लेजर वाक ( महाभारत ) १-'वण' त्ति वनानि नगर विप्रकृष्टानि -भगवतीसूत्र सटीक भाग १, श० ५, उ० ७, पत्र ४३० . २-उत्तराध्ययन सटीक पत्र २६८-१ । ३-उत्तराध्ययन ( अंग्रेजी-खंड ) पृष्ठ ३५ । ४-मोन्योर-मोन्योर, विलियन्स संस्कृत-इंग्लिश डिक्शनरी पृष्ठ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy