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________________ भक्त राजे ६४६ श्रीमत्पार्श्व जिनाधीशशासनांभोजषट्पदः । सम्यग्दर्शन पुण्यात्मा सोऽणुव्रतधरोऽभवत् ॥' इससे स्पष्ट है कि श्रेणिक का वंश ही जैन श्रावक था । जैन-साहित्य में उसके उल्लेख की चर्चा से पूर्व बौद्ध-साहित्य में आये उसके प्रसंग का भी उल्लेख कर दूँ। महावग्ग में आता है कि सम्यक् सम्बुद्ध होने के बाद बुद्ध राजगृह आये तो बुद्ध के उपदेश से प्रभावित होने के बाद श्रेणिक उनसे बोला___"एसाहं भन्ते, भगवन्तं सरणं गच्छामि, धम्म च, भिक्ख संघं च । उपासकं मं भंते भगवा धारेतु... 'पे० स्वातनाय भत्तंसिद्धि भिक्खुसंघेना ति । -महावग्ग, पृष्ठ ३७ । -इसलिए मैं भगवान् की शरण लेता हूँ-धर्म और भिक्षु-संघ की भी। आज से भगवान् मुझे हाथ जोड़ शरण में आया उपासक जानें। भिक्षु-संघ सहित कल के लिए मेरा निमंत्रण स्वीकार करें। -विनयपिटक (हिन्दी), पृष्ठ ९७ । इस प्रसंग से अधिक-से-अधिक इतना माना जा सकता है कि बीच में वह बौद्ध-धर्म की ओर आकृष्ट हुआ था। पर, वह प्रभाव बहुत दिनों तक उस पर नहीं रहा, यह बात जैन-प्रसंगों से पूर्णतः प्रमाणित है। उत्तराध्ययन में मंडिकुक्षि-चैत्य में अनाथी ऋषि से श्रेणिक के भेंट होने का उल्लेख आया है । जैन ग्रन्थों में जिसे 'मंडिकुक्षि' कहा गया है, उसका उल्लेख बौद्ध-ग्रंथों में मद्दकुच्छि' नाम से किया गया है। मंडिकुक्षि पर टीका करते हुए उत्तराध्ययन से टीकाकार ने लिखा है १-त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, पर्व १०, सर्ग ६, श्लोक ८ पत्र ७१-१ । २-राजगहे विहरामि महकुच्छिस्मि मिगदाये -दीघनिकाय, भाग २, पृष्ठ ९१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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