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________________ भक्त राजे २ -- विहार यात्रा - ए प्लेजर वाक' यदि प्रोफेसर महोदय ने 'विहार' शब्द पर भी ध्यान दिया होता तो उन्हें यह शंका न हो पाती । शब्दार्थ चिन्तामणि, भाग ४, पृष्ठ ४०३ में 'विहार' का अर्थ दिया है क्रीडार्थ पद्भयांसञ्चरणे । परिक्रमे । भ्रमणे । 1 इनमें प्रोफेसर महोदय ने शिकार कैसे जोड़ लिया यह नहीं कहा जा सकता । कार्पेटियर ने 'हंटिंग' के बाद कोष्ठ में कौटिल्य अर्थशास्त्र का नाम लिखा है । कौटिल्य अर्थशास्त्र में १३ - वें अधिकार के २ अध्याय में यात्रा विहार शब्द आया है । वहाँ उल्लेख है : यात्रा विहारे रमते यत्राक्रीडति वाऽम्भसि और, जहाँ शिकार का प्रसंग है, वहाँ कौटिल्य अर्थशास्त्र में 'मृगया४ शब्द लिखा है । यदि कार्पेटियर ने 'चैत्य' शब्द पर ध्यान दिया होता तो शिकार - यात्रा की कल्पना ही न उठती । 3 डाक्टर याकोबी ने उसका ठीक अर्थ 'प्लेजर एक्सकरशन" किया है । इस यात्रा में श्रेणिक ने एक वृक्ष के नीचे एक संयमशील साधु को देखा । और उनके निकट जाकर तस्म पाए उ वन्दिता, काऊण य पयाहिणं । नाइद्रमणासन्ने पंजली ६५१ Jain Education International पडिपुच्छई ॥ For Private & Personal Use Only ε १ - आटेज संस्कृत-इ ंग्लिश डिक्शनरी, भाग ३, पृष्ठ १४८५ । २ - शब्दार्थ चिंतामणि - भाग ४, पृष्ठ ४०३ । ३ – कौटिल्य अर्थशास्त्र, शामाशास्त्री सम्पादित, पृष्ठ ३९९ । ४ -- वही, पृष्ठ ३२९ । ५- सेक्रेड बुक्स आव द' ईस्ट, वाल्यूम ४५, पृष्ठ १०० । ६ - उत्तराध्ययन, नेमिचन्द्र की टीका, अध्ययन २०, गाथा ७, पत्र २६८- १ । www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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