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________________ तीर्थस्थापना समयज्ञ इन्द्र रत्न के थाल में वासक्षेप लेकर भगवान् के पार्श्व में खड़े थे। इस समय इन्द्रभूति आदि प्रभु की अनुज्ञा लेने के लिए अनुक्रम की परिपाटी से मस्तक नत करके खड़े रहे । “द्रव्य, गुण और पर्याय की तुम्हें अनुज्ञा है"--ऐसा कहते हुए पहले प्रभु ने इन्द्रभूति के मस्तक पर चूर्ण डाला और फिर अनुक्रम से शेष सभी के मस्तक पर चूर्ण डाले। इस समय आनन्दित देवतागणों ने भी प्रसन्न होकर ग्यारहों गणधरों पर चूर्ण और पुष्प की वृष्टि की। "यह चिरंजीवि होकर चिरकाल तक धर्म का उद्योग करेंगे"-ऐसा कहते हुए, भगवान् ने सुधर्मा स्वामी को सभी मुनियों में मुख्य किया । बाद में, साध्वियों में संयम के उद्योग की घटना के लिए चंदना को प्रवर्तिनीपद पर स्थापित किया । इस प्रकार पौरुषी' समाप्त होने पर प्रभु ने अपनी देशना समाप्त की। इसी समय राजा द्वारा तैयम् की गयी बलि लेकर सेबक-पुरुष पूर्व द्वार से आया। वह बलि आकाश में फेंकी गयी। उसमें आधी बलि ( पृष्ठ ६ की पादटिप्पणि का शेषांश) ४-तेणं कालेजं तेणं समएणं समणस्स भगवो महावीरस्स नव गणा इक्कारस गणहरा हुत्था -कल्पसूत्र, सुबोधिका टीका सहित व्याख्यान८, सूत्र १ पत्र ४७४ 'गण' शब्द पर टीका करते हुए अभिधान-चिन्तामणि स्वोपज्ञ टीका सहित, देवाधिदेव-काण्ड, श्लोक ३१ में लिखा है---''गणा नवास्यपि संघाः" और फिर 'गण' पर टीका करते हुए लिखा है "ऋषीणां संघाः समृहाः गणाः" (पृष्ठ १३)। औपपातिक सूत्रसटीक, पत्र ८१ में आता है : कुलं गच्छ समुदायः, गणाः कुलानां समुदायः, संघो गण समुदायः १-प्रहर २-विषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, पर्व १०, सर्ग ५, श्लोक १७६-१८१, पत्र पत्र ७०-२ । . ३-श्रावश्यकचूणि, पूर्वार्द्ध, पत्र ३३३ में राजा का नाम देवमल्ल दिया है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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