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________________ तीर्थङ्कर महावीर से किं तं अंगपविट्ठ ? अंगपविट्ठ दुवालसविहं पण्णत्तं तं जहा-आयारो १, सूयगडो २, ठाणे ३, समवाओ ४ विवाहपन्नत्ती ५, नायाधम्मकहाणो ६, उवासगदसाओ ७, अंतगडदसाओ ८, अणुत्तरोववाइअदसाओ ६, पण्हवागरणाई १०, विवागसुअं ११, दिट्टिवायो' पूर्वो के नाम भी नंदीसूत्र में दिये हैं : से किं तं पुच गए ? २ चउद्दसविहे पण्णत्ते. तं जहा उप्पायपुवं १, अग्गाणीयं २, वीरिगं ३, अत्थिनत्थिप्पवायं ४, नाणप्पवायं ५, सच्चप्पवायं ६, पायप्पवायं ७, कम्मप्पवायं ८, पच्चक्खाणप्पायं ६, विज्जाणुप्पवायं १०, अवंझ ११, पाणाउ १२, किरिबाविसालं १३, लोकबिंदुसारं १४. ... ...... सात गणधरों की सूत्र-वाचना पृथक-पृथक थी; पर अकम्पित और अचलभ्राता की एक वाचना हुई तथा मेतार्य और प्रभास की एक वाचना हुई। इस प्रकार भगवान् के ११ गणधरों में ९ गण हुए। (पष्ट ५ की पादटिप्पणि का शेषांश ) प्राणिपत्य पृच्छति गौतम स्वामी कथय भगवस्त त्वं ततो भगवाना चाष्ट 'उप्पन्नेइ वा' पुनस्तथैव पृष्टे 'विगमेइ वा' 'धुवेइ वा' । एतास्तिस्रो निषिधा आभ्य एवोत्पादादि त्रय युक्त सर्व मिति प्रतीतिस्तेषां स्यात् । ततश्च ते पूर्वभवभावितमतयो बीज बुद्धि त्वात् द्वादशांगी रचयन्ति.... -पत्र ४०३-१ १-नन्दीसूत्र सटीक, सूत्र ४५, पत्र २०६-१ २-नन्दीसूत्र सटीक, सूत्र ५७ पत्र २३७-१ इन १४ पूर्वी के नाम समवायांगसूत्र सटीक, समवाय १४, पत्र २५-१ में भी आये है। ३-त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, पर्व १०, सर्ग '५, श्लोक १७४, पत्र ९०-२ गुणचन्द्र-रचित 'महावीर-चरियं,' प्रस्ताव ८, पत्र २५७-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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