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________________ तीर्थङ्कर महावीर आकाश में देवताओं ने लोक लिया। आधी भूमि पर गिरी। उसमें से आधा भाग राजा ने ले लिया और शेष आधा लोगों ने बाँट लिया। उसके पश्चात् प्रभु सिंहासन पर से उठे और उत्तर द्वार से निकलकर द्वितीय प्राकार के बीच में स्थित देवच्छन्दक में विश्राम करने गये। भगवान् के चले जाने के बाद गौतम गणधर ने उनके चरण-पीट पर बैटकर उपदेश किया। दूसरी पौरुपी समाप्त होने पर गौतम स्वामी ने उपदेश समात किया । इस प्रकार तीर्थ की स्थापना करके भगवान् तीर्थकर हुए। तीर्थकर शब्द को व्याख्या करते हुए कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य ने लिखा है : तीर्यते संसार समुद्रोऽनेनेति तीर्थं प्रवचनाधारश्चतुर्विधः संघः प्रथम गणधरोवा । यदाहु :-"तित्थं भन्ते तित्थं तित्थयरे तित्थं गोयमा अरिहा तावनियमा तित्थंकरे तित्थं पुण चाउवण्णे समण संघे पठम गणहरे" 'तत्करोति तीर्थङ्कारः.. उसके बाद कुछ काल तक वहाँ ठह्रने के पश्चात् भगवान् ने राजगृही की ओर प्रस्थान किया। ( पष्ठ ७ की पादटिप्पणि का शेषांश) ४-आवश्यकचूर्णि, पूर्वार्द्ध पत्र ३३३ में 'बलि' को 'तंदुलाणं सिद्धं' लिखा है। 9-तत्रैवेशान कोणे प्रभोर्विश्रामार्थं देवच्छन्दको रत्नमयः धर्मघोष सरि-रचित 'समवसरण-स्तव' अवचूरी सहित (आत्मानंद जैन सभा, भावनगर ), पत्र समवसरण-रचना का विस्तृत वृत्तांत त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, पर्व १, सर्ग ३, श्लोक ४२३-५५८ पत्र ८१.२ से ८६-२ तक में है । जिज्ञासु पाठक वहाँ देख लें। २-त्रिपष्टिशलाकापुरुषचरित्र, पर्व १०,सर्ग ५, श्लोक १८२-१८५। पत्र ७०.२ -अभिधान-चिंतामणि स्वोपश टीका सहित, देवाधिदेव क्रांड श्लोक २५ की टीका, पृष्ठ १० ४-यह पाठ भगवतीसूत्र सटीक शतक, २०, उद्देश ८, सूत्र ६८२, १४६१ में आता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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