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________________ भक्त राजे ६३७ नगरों में गिना जाता था। और, जैन-ग्रन्थों में इसकी गणना १० प्रमुख राजधानियों में की गयी है। ___ मगध की राजधानी के रूप में कई नगरों के बसाये जाने का उल्लेख जैन-ग्रंथों में मिलता है । विविधतीर्थ कल्प में जिनप्रभसूरि ने 'वैभारगिरिकल्प' मैं उन सब नामों का उल्लेख किया है : क्षितिप्रतिष्ठ चणकपुर-र्षभपुराभिधम् । कुशाग्रपुर सहं च क्रमाद्राजगृहाह्वयम् ॥ ऋषिमंडलप्रकरण में अधिक विस्तृत रूप में इसका उल्लेख आया है : अतीतकाले भरतक्षेत्रे क्षत्रकुलोद्भवः । जितशत्रुरभूद् भूपः, पुरे क्षितिप्रतिष्ठिते ॥१॥ कालात् तत्पुरवास्तूनां क्षयाद् वास्तु विशारदैः। पश्यद्भिश्चनकक्षेत्रं दृष्टं फलित-पुष्पितम् ॥ २॥ तत्राऽऽसीत् चनकपुरं कालाद् वास्तुक्षयात् पुनः । वास्तु विद्भिर्वने दृष्टो, बलिष्टो वृषभोऽन्यदा ॥३॥ (पृष्ठ ६३६ की पादटिप्पणि का शेषांश) ततो राजगृहाख्यं-तत्, पुरं कालान्तरेऽभवत् । ...................|| -ऋषिमण्डल प्रकरण वृत्ति, पत्र १४३-२ (इ) कहिं वञ्चह ? श्राह रायगिह, कतो एह ? रायगिहातो, __ एवं नगरं रायगिहं जातं । -आवश्यक चूर्णि, उत्तरार्द्ध, पत्र १५८ १-डिक्शनरी आव पाली प्रापर नेम्स, भाग २, पृष्ठ ७३३ २-स्थानांग सूत्र सटीक ठाणा १०, उ०, सूत्र ७१८ पत्र ४७७-२ ३-विविध तीर्थकल्प, पृष्ठ २२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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