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तीर्थकर महावीर थी।' कुशाग्रपुर का उल्लेख मंजुश्रीमूलकल्प' (बौद्ध-ग्रन्थ ) और छैनसांग के यात्रा-ग्रंथ में भी आया है ।
जैन-ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि आग लगने से कुशाग्रपुर भस्म हो जाने के बाद उससे एक कोस की दूरी पर राजगृह बसी । उसका नाम राजगृह क्यों पड़ा इसका कारण बताते हुए हेमचन्द्राचार्य ने लिखा है कि पीछे लोग परस्पर पूछते कि कहाँ जा रहे हैं ? तो उत्तर मिलता राजगृह ( राजा के घर ) जा रहा हूँ । इस प्रकार प्रसेनजित राजा ने वहाँ राजगृहनामक नगर बसाया । यह राजगृह बौद्ध-ग्रंथों में बुद्धकाल के ६ प्रमुख
नि
१-तत्थ कुसग्गपुरं जातं, तंमि य काले पसेणइ राया
-आवश्यक चूर्णि, उत्तरार्ध, पत्र १५८ कुशाग्रीयमतिरभूत प्रसेनजिदिलापतिः
–त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र पर्व १०, सर्ग ६, पत्र ७१-१ इसी प्रकार का उल्लेख ऋषिमंडलप्रकरण पत्र १४३-१, आदि ग्रन्थों में भी है।
२-ऐन इम्पीरियल हिस्ट्री आव इंडिया, मंजुश्रीमूलकल्प, पृष्ठ १७
३-'आन युवान् च्याङ् ट्रैवेल्स इन इंडिया' ( वाटर्स कृत अनुवाद भाग २, पृष्ठ १६२ ४-इति तत्याज नगरं तद्राजा सपरिच्छदः । क्रोशेनैकेन च ततः शिविरं स न्यवेशयत ॥ ११ ॥
–त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, प० १०, स० ६, पत्र ७५-१ ५-(अ) सञ्चरन्तस्तदा चैवं वदन्ति स्म मिश्रो जनाः ।
क्वनु यास्य श्र यास्यामो वयं राजगृहं प्रति ॥ ११६ ॥
-त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, पर्व १०, सर्ग ६, पत्र ७५-१ (आ) कश्चित् पृच्छति यासिक्व ? सोऽवग् राजगृहं प्रति ।
आगतोऽसि कुतश्चान्यः ? सोऽवग राजगृहादिति ॥२६॥
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