________________
भक्त राजे
शब्द ही नहीं हैं। रतनचन्द्रजी ने 'अर्धमागधी कोष' में भंभसार शब्द दिया है । वह भी अशुद्ध है।
बौद्ध-ग्रन्थों में श्रेणिक का दूसरा नाम बिंबिसार मिलता है। इसका कारण बताते हुए लिखा है कि सोने सरीखा रंग होने से उसे बिंबिसार कहा जाता था। तिब्बती-ग्रन्थों में आता है कि श्रेणिक की माँ का नाम 'बिम्बि' था। अतः उसे बिम्बिसार कहा जाने लगा। - इन नामों के अतिरिक्त हिन्दू पुराणों में उसके कुछ अन्य नाम विधिसार, विंध्यसेन तथा सुविंदु भी मिलते हैं ।
माता-पिता
जैन ग्रन्थों में श्रेणिक के पिता का नाम प्रसेनजित बतलाया गया है । दिगम्बरों के उत्तरपुराण में आता है :
१-अर्द्धमागधी कोष, वाल्यूम ४, पृष्ठ ४ २-बिम्बि ति सुवण्णाण सार सुवरण सदिस वएणताय
-पाली इंग्लिश डिक्शनरी, पृष्ठ ११० ३-महिप्यां बिम्बास्तनयः अतो अस्य बिम्बिसार इति नाम कार्यम् ___-इंडियन हिस्टारिकल कार्टली, वाल्यूम १४, अंक २, पृष्ठ ४१३
४-श्रमद्भागवत, सानुवाद स्कंध १२, अध्याय १, पृष्ट ९०३ (गोरखपुर)
५-भारतवर्ष का इतिहास-भगवदत्त-लिखित पृष्ठ २५२ ६-वही ७-पुहईस पसेणइणो, तणुबभवो सेणियो अासि
-उपदेश माला सटीक, पत्र ३३३ इसके अतिरिक्त यह उल्लेख आवश्यकचूर्णि, उत्तराद्ध पत्र १५८, आवश्यक हारिभद्रीय वृत्ति पत्र ६७१-१, त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र पर्व १०, सर्ग ६, श्लोक १, पत्र ७१-१, ऋषिमंडलप्रकरण पत्र १४३-१ भरतेश्वर बाहुबलि चरित्र, प्रथम विभाग, पत्र २१-१ आदि ग्रन्थों में भी आया है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org