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तीर्थकर महावार . चतुर्विशत्यंगुलबदनद्वयाभेरोति कश्चित् । अन्तस्तन्त्रोका ढक्का भेरोति स्वामी ॥'
उसका नाम भंभा के ही कारण भंभासार पड़ा, इसका उल्लेख स्थानांग को टीका में भी है :'भंभा' त्ति ढक्का सा सारो यस्य स भंभासारः' और, उपदेशमाला सटीक में भी ऐसा ही आता है सेणिय कुमरेण पुणो जयढक्का कड्ढिया पविसिऊणं । पिऊण तु?णतो, मणिओ सो भंभासारो॥ ऐसा उल्लेख आवश्यकचूर्णि उत्तरार्द्ध पत्र १५८-२ में भी है।
दलसुख मालवणिया ने स्थानांग-समवायांग के गुजराती-अनुवाद में बिम्बिसार लिखा है । पर, श्रेणिक का यह नाम किसी जैन-ग्रन्थ में नहीं मिलता। अपनी उसी टिप्पणी में उन्होंने 'भिंभिसार" नाम दिया है। पाइअसहमहण्णवो में 'भंभसार', 'भिंभिसार' और 'भिभसार तीन शब्द आये हैं । पर ये सब अशुद्ध हैं। हमने ऊपर कितने ही प्रमाण दिये हैं, जिनसे स्पष्ट है कि 'भंभा' शब्द तो है, पर 'भिंभ', 'भिंभि', आदि
१---शब्दार्थचिंतामणि, भाग ३, पृष्ठ ४६६ २-स्थानांग सटीक उत्तरार्द्ध पत्र ४६१-१ ३-उपदेशमाला पत्र ३३४-१ ४-स्थानांग-समवायांग (गुजराती ), पृष्ठ ७४० ५-वही ६-पाइअसहमहण्णवो पृष्ठ ७९४ ७-वही, पृष्ठ ८०७ ८-वही पृष्ट ८०७
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