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________________ ६३० तीर्थंकर महावीर ( जातक ३, ४०५ ), २२ जहाजी ( जातक ४, १३७ ), २३ ढोर चराने वाले ( गौ० ध० सू० ९, २१), २४ सार्थवाह ( वही, जातक १, ३६८; जातक २, २९५ ), २५ डाकू ( जातक ३, ३८८; ४, ४३०), २६ जंगल में नियुक्त रक्षक (जातक २, ३३५), २७ कर्ज देने वाले (गौ० ध० शा० २१ तथा रीसडेविस की बुद्धिस्ट इण्डिया पृष्ठ ९०) श्रेणिक का नाम श्रेणी का अधिपति होने से ही 'श्रेणिक' पड़ा, यह बात अब बौद्ध-सूत्रों से भी प्रमाणित है। विनयपिटक के गिलगिट-मांस्कृप मैं आता है : स पित्राष्टादशसु श्रेणीष्ववतारितः। अतोऽस्य श्रेण्यो बिम्बिसार इति ख्यातः।' 'डिक्शनरी आव पाली प्रापर नेम्स' में उसके श्रेणिक नाम पड़ने के दो कारण दिये हैं महतीया सेनाय समन्नागोतत्त वा सेनिय गोत्त ता वा' (१) या तो महती सेना होने से उसका नाम सेनिय पड़ा (२) या सेनिय गोत्र का होने से वह श्रेणिक कहलाता था। जैन ग्रंथों में उसका दूसरा नाम मंभासार मिलता है । इसका कारण स्पष्ट करते हुए त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में कहा गया है कि श्रेणिक जब छोटा था तो एक बार राजमहल में आग लगी । श्रेणिक उस समय भंभा लेकर भागा । तब से उसे भंभासार कहा जाने लगा। ___भंभा बाजे के ही कारण उसका नाम भंभासार पड़ा, इसका उल्लेख १-इण्डियन हिस्टारिकल काटर्ली, वाल्यूम १४, अंक २, जून १९३८, पृष्ठ ४१५ २-डिक्शनरी आव पाली प्रापर नेम्स, भाग २, पृष्ठ २८९ तथा १२८४ ३–त्रिषष्टिशालाकापुरुषचरित्र, पर्व १०, सर्ग ६, ३लोक १०९-११२ पत्र ७४।२ से ७५।१ तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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