________________
भक्त राजे
६२६
है।' श्रेणियों का उल्लेख करते हुए डाक्टर रमेशचंद्र मजूमदार ने 'कार. पोरेट लाइफ इन ऐंशेंट इंडिया' में लिखा है कि ये १८ श्रेणियाँ कौन थीं, यह बताना सम्भव नहीं है। यदि डाक्टर मजूमदार ने जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति देखी होती तो उनकी कठिनाई दूर हो गयी होती । कहीं एक साथ श्रेणियों का उल्लेख न पा सकने के कारण श्री मजूमदार ने अपनी पुस्तक में विभिन्न स्थलों से एवं संगृहीत श्रेणियों की एक स्वतंत्र तालिका दो है । हम वह तालिका नीचे दे रहे हैं। ( साथ ही कोष्ठ में उनका संदर्भ भी दिया है)
१ लकड़ी पर काम करने वाले ( जातक ६, पृष्ठ ४२७), २ धातुओं का काम करने वाले ( वही), ३ पत्थर का करने वाले, ४ चमड़े का काम करने वाले (वही), ५ हाथी दाँत पर काम करने वाले ६ आदेयांत्रिक (नासिक-इंस्कृप्शन, ल्यूडर्स, ११३७ ), ७ वासकार (जुन्नार-इंस्कृष्शन, ल्यूडस ११६५), ८ कसकार ( वही ) ९ जौहरी, १० जुलाहे ( ना० ई० ११३३), ११ कुम्हार (ना० इ० ११३७ ), १२ तेली ( वही ), १३ टोकरी बनाने वाले, १४ रंगरेज, १५ चित्रकार (जातक ६, पृ० ४२७ ) १६ धान्निक (जु० इ०, ११८० ), १७ कृषक (गौतम-धर्मसूत्र ९, २१), १८ मछवाहे, १९ पशु वध करने वाले २० नाई २१ माली
१-मूगपक्ख जातक। जातक के हिन्दी-अनुवाद, भाग ६. पृष्ठ २४ में भदंत आनंद कौसल्यापन ने सेणी का अर्थ 'सेना' कर दिया है । यह उनकी भूल है । बंगला-अनुवाद ठीक है उसमें वर्ण तथा श्रेणी ठीक रूप में लिखा है (देखिये जातक का बंगला अनुवाद, भाग ६, पृष्ठ १४) यह श्रेणी शब्द वैदिक ग्रंथों में भी आता है। मनुस्मृति ( ८-४२ मेधातिथि टीका, पृष्ठ ५७८ ) में एक कार्यापन्ना वणिक' आया है । यह शब्द श्रीमद्भागवत् में ( स्कंध २, अ० ८, श्लोक १८ गीताप्रेस संस्करण भाग १, पृष्ठ १८३) तथा रामायण ( भाग १, २-२६-१४ पृष्ठ १२२ ) में भी आया है ।
२-कार्पोरेट लाइक इन ऐंशेंट इंडिया, द्वितीय संस्करण, पृष्ठ १८
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org