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________________ ६२६ तीर्थकर महावीर 'हरि' शब्द का एक अर्थ 'सर्प' भी होता है।' और 'अंक' का अर्थ 'चिह्न' होता है। अतः शिशुनाग—छोटा नाग-वंश और हर्यक कुल वस्तुतः एक ही लक्ष्य की ओर संकेत करते हैं। नागों के देश का मुख्य नगर तक्षशिला था और तक्षशिला वाहीक-देश में था। अतः जैन-ग्रन्थों में आये 'वाहीक-कुल' से भी उसी ओर संकेत मिलता है।। शिशुनाग-वंश का उल्लेख अब मूर्ति पर भी मिल जाने से इस वंश के मूल पुरुष के सम्बन्ध में कोई शंका नहीं की जा सकती। एक लेख पर उल्लेख है: नि भ द प्र श्रेणी अ ज (1) सत्रु राजो (सि) र (१) ४, २० (थ), १० (ड)८ (हि या ह्न) के चिह्न । श्रेणी के उत्तराधिकारी स्वर्गवासी अजातशत्रु राजा श्री कूणिक शेगसिनाग मागधों के राजा । ३४ ( वर्ष ) ८ ( महीना ) ( शासन काल) । नाम जैन-ग्रन्थों में श्रेणिक के दो नाम मिलते हैं-श्रोणिक और भंभासार । श्रेणिक शब्द पर टीका करते हुए हेमचन्द्राचार्य ने अभिधान-चिंतामणि की स्वोपज्ञ टीका में लिखा है: श्रेणीः कायति श्रेणिको मगधेश्वरः १-आप्टेज संस्कृत-इंग्लिश-डिक्शनरी, भाग ३, पृष्ठ १७४९ । २-वही, भाग १, पृष्ठ २२ । ३-'जनरल आव द' बिहार ऐंड उड़ीसा रिसर्ज सोसाइटी । दिसम्बर १९१९, वाल्यूम ५, भाग ४, पृष्ठ ५५० ।। : ४-'श्रेणिकस्तु भंभासारो'-अभिधान चिंतामणि, मयंकांड, श्लोक ३७६, पृष्ठ २८५ । ५-वही । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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