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भक्त राजे
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- महाभारत ( गीता प्रेस ) कर्णपर्व अध्याय ४४, श्लोक ४२ पृष्ठ
३८९५ ।
इस जनपद का उल्लेख पतंजलि' ने भी किया है । डाक्टर वासुदेवशरण अग्रवाल ने अपने ग्रंथ 'पाणिनीकालीन भारतवर्ष' में उसकी सीमा के सम्बन्ध में कहा है:
"सिन्धु से शतद्रु तक का प्रदेश वाहीक था । इसके अंतर्गत भद्र, उशीनर, और तिगर्त तीन मुख्य भाग थे । *
इसका उल्लेख शतपथ ब्राह्मण में भी आता है ।
वंश - निर्णय
ऊपर दिये प्रमाणों के अतिरिक्त 'गर्ग संहिता' ( युगपुराण ) में भी इस वंश को शिशुनाग का ही वंश होना लिखा है:
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ततः कलियुगे राजा शिशुनागात्प्रजो बली । उदधी (व्यी) नाम धर्मात्मा पृथिव्यां प्रथितो गुणैः ॥
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अतः स्पष्ट है कि सभी पौराणिक ग्रन्थों में इस वंश को शिशुनाग वंश लिखा है । बौद्ध ग्रन्थों में इसे हर्यक कुल का लिखा है और जैन ग्रन्थों में इस कुल को वाहीकवासी लिखा गया है ।
१-४-२-१०४; १-१-१५; ४ - १०८ - ३५४; ४-२-१२४ । अन्य प्रसंगों के लिए देखिये महाभाष्य शब्दकोष, पृष्ठ ९६८ । २– पाणिनीकालीन भारतवर्ष, पृष्ठ ४२ ।
३--१-७-३८ ।
४–'जरनल आव द' बिहार ऐंड उड़ीसा रिसर्च सोसाइटी, सितम्बर १९२८, वाल्यूम १४, भाग ३, पृष्ठ ४०० । ( हिस्टारिकल डाटा इन गर्ग संहिता )
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