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________________ भक्त राजे ६२५ - महाभारत ( गीता प्रेस ) कर्णपर्व अध्याय ४४, श्लोक ४२ पृष्ठ ३८९५ । इस जनपद का उल्लेख पतंजलि' ने भी किया है । डाक्टर वासुदेवशरण अग्रवाल ने अपने ग्रंथ 'पाणिनीकालीन भारतवर्ष' में उसकी सीमा के सम्बन्ध में कहा है: "सिन्धु से शतद्रु तक का प्रदेश वाहीक था । इसके अंतर्गत भद्र, उशीनर, और तिगर्त तीन मुख्य भाग थे । * इसका उल्लेख शतपथ ब्राह्मण में भी आता है । वंश - निर्णय ऊपर दिये प्रमाणों के अतिरिक्त 'गर्ग संहिता' ( युगपुराण ) में भी इस वंश को शिशुनाग का ही वंश होना लिखा है: - ततः कलियुगे राजा शिशुनागात्प्रजो बली । उदधी (व्यी) नाम धर्मात्मा पृथिव्यां प्रथितो गुणैः ॥ ४ अतः स्पष्ट है कि सभी पौराणिक ग्रन्थों में इस वंश को शिशुनाग वंश लिखा है । बौद्ध ग्रन्थों में इसे हर्यक कुल का लिखा है और जैन ग्रन्थों में इस कुल को वाहीकवासी लिखा गया है । १-४-२-१०४; १-१-१५; ४ - १०८ - ३५४; ४-२-१२४ । अन्य प्रसंगों के लिए देखिये महाभाष्य शब्दकोष, पृष्ठ ९६८ । २– पाणिनीकालीन भारतवर्ष, पृष्ठ ४२ । ३--१-७-३८ । ४–'जरनल आव द' बिहार ऐंड उड़ीसा रिसर्च सोसाइटी, सितम्बर १९२८, वाल्यूम १४, भाग ३, पृष्ठ ४०० । ( हिस्टारिकल डाटा इन गर्ग संहिता ) ४० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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