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भक्त राजे
६२३ जैन साहित्य में
पर, जैन-साहित्य में श्रेणिक को वाहीक-कुल' का बताया गया है । यहाँ प्रयुक्त 'कुल' शब्द को समझने में लोगों ने भूल की और इस कारण जब 'वाहीक' का अर्थ नहीं लगा तो जैन-विद्वानों और ऐतिहासिकों दोनों ही ने इस उल्लेख की ही उपेक्षा कर दी।
(१) 'कुल' शब्द की टीका करते हुए 'अमरकोष' की भानुजी दीक्षित की टीका में लिखा है :
कुलं जनपदे गोत्रे सजातीयगणेऽपि . .
इसका यह अर्थ हुआ कि 'कुल' शब्द से तात्पर्य जनपद से है। जहाँ का यह वंश मूल निवासी था।
२-प्रोफेसर वामन शिवराम आप्टे के संस्कृत-इंग्लिश डिक्शनरी के गोडे-कर्वे-सम्पादित वृहत् संस्करण में कुल का एक अर्थ 'रेसिडेंस आव अ फैमिली' लिखा है। और, इसके प्रमाण स्वरूप दो प्रमाण भी दिये हैं। १-ददर्श धीमान्स कपिः कुलानि
-रामायण, ५, ५, १०
१-(अ) आवश्यकचूर्णि, उत्तरार्द्ध, पत्र १६५
(आ) आवश्यक हारिभद्रीय वृत्ति, पत्र ६७७-१ (इ) चेटकोऽप्य ब्रवीदेवमनात्मज्ञस्तवः । वाहीक कुलजो वाञ्छन् कन्यां हैहय वंशजां ॥२२६॥
–त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, पर्व १०, सर्ग ६, पत्र ७८ (ई) परिभाविऊण भूवो भणेइ कन्नं हेहया अम्हे । वाहिय कुलंपि देभो जहा गयं जाह तो तुब्भे । ११०
-उपदेशमाला दोधट्टी टीका, पत्र ३३९. २-अमरकोष, निर्णय सागर प्रेस, १९२९, पृष्ठ २५० ३-भाग १, पृष्ठ ५८६.
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