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________________ भक्त राजे ६२१ उसका तथा उसके वंश का उल्लेख वैदिक, बौद्ध तथा जैन सभी साहित्यों में मिलता है । वैदिक-साहित्य में उसके वंश का उल्लेख श्रीमद्भागवत् महापुराण में निम्नलिखित रूप में आता है : शिशुनागस्ततो भाग्यः काकवर्णः तत्सुतः । क्षेमधर्मा तस्य सुतः क्षेत्रज्ञः क्षेमधर्मजः ॥५॥ विधिसारः सुतस्तस्या जात शत्रुर्भविष्यति । दर्भकस्तत्सुतो भावीदर्भकस्या जयः स्मृतः ॥६॥ नन्दिवर्द्धन श्रजेयो महानन्दिः सुतस्ततः । शिशुनागा दशैवेते षष्ट्युत्तर शतत्रयम् ॥७॥ इसके बाद शिशुनाग नाम का राजा होगा । शिशुनाग का काकवर्ण, उसका क्षेत्रधर्मा । क्षेत्रधर्मा का पुत्र क्षेत्रज्ञ होगा । क्षेत्रज्ञ का विधिसार, उसका अजातशत्रु, फिर दर्भक और दर्भक का पुत्र अजय होगा । अजय से नन्दिवर्द्धन, और उससे महानन्दि का जन्म होगा । शिशुनाग वंश में ये दस राजे होंगे । ये सब मिलकर कलियुग में ३६० वर्ष तक पृथ्वी पर राज्य करेंगे । १ श्रीमद्भागवत के अतिरिक्त वायुपुराण अध्याय ९९, श्लोक ३१५ से ३१९ तक, मत्स्यपुराण अध्याय २७२ श्लोक ५ से १२ तक, तथा विष्णु पुराण अंश ४, अध्याय २४, श्लोक १-८, पृष्ठ ३५८-३५९ में भी इस वंश का उल्लेख है 1 १ - श्रीमद्भागवत सानुवाद ( गीताप्रेस गोरखपुर ) द्वितीय खंड, पृष्ठ ९०३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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