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भक्त राजे
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उसका तथा उसके वंश का उल्लेख वैदिक, बौद्ध तथा जैन सभी साहित्यों में मिलता है ।
वैदिक-साहित्य में
उसके वंश का उल्लेख श्रीमद्भागवत् महापुराण में निम्नलिखित रूप में आता है :
शिशुनागस्ततो भाग्यः काकवर्णः तत्सुतः । क्षेमधर्मा तस्य सुतः क्षेत्रज्ञः क्षेमधर्मजः ॥५॥ विधिसारः सुतस्तस्या जात शत्रुर्भविष्यति । दर्भकस्तत्सुतो भावीदर्भकस्या जयः स्मृतः ॥६॥ नन्दिवर्द्धन श्रजेयो महानन्दिः सुतस्ततः । शिशुनागा दशैवेते षष्ट्युत्तर शतत्रयम् ॥७॥
इसके बाद शिशुनाग नाम का राजा होगा । शिशुनाग का काकवर्ण, उसका क्षेत्रधर्मा । क्षेत्रधर्मा का पुत्र क्षेत्रज्ञ होगा । क्षेत्रज्ञ का विधिसार, उसका अजातशत्रु, फिर दर्भक और दर्भक का पुत्र अजय होगा । अजय से नन्दिवर्द्धन, और उससे महानन्दि का जन्म होगा । शिशुनाग वंश में ये दस राजे होंगे । ये सब मिलकर कलियुग में ३६० वर्ष तक पृथ्वी पर राज्य करेंगे ।
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श्रीमद्भागवत के अतिरिक्त वायुपुराण अध्याय ९९, श्लोक ३१५ से ३१९ तक, मत्स्यपुराण अध्याय २७२ श्लोक ५ से १२ तक, तथा विष्णु पुराण अंश ४, अध्याय २४, श्लोक १-८, पृष्ठ ३५८-३५९ में भी इस वंश का उल्लेख है 1
१ - श्रीमद्भागवत सानुवाद ( गीताप्रेस गोरखपुर ) द्वितीय खंड,
पृष्ठ ९०३ ।
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