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तीर्थंकर महावीर
कावड़ ग्रहण करके पूर्व दिशा को प्रोक्षित करके " सोम दिशा के सोम महाराज धर्म साधन में प्रवृत्त शिव राजर्षि का रक्षण करो, और पूर्व दिशा में स्थित कंद, मूल, छाल, पांदड़ा, पुष्प, फल, बीज और हरित वनस्पतियों को लेने की आज्ञा दें” – ऐसा कह कर शिव राजर्षि पूर्व ओर चले । और,
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लीप
कावड़ भर कर पत्र-पुष्प इत्यादि ले आया । कुटी के पीछे पहुँचने पर कावड़ को नीचे रखा, वेदिका साफ की, वेदिका को करके शुद्ध किया और डाभ - कलश लेकर गंगा नदी के तट पर आया । वहाँ स्नानआचमन करके पवित्र होकर, देव-पितृ कार्य करके, कुटी के पीछे आया । फिर दर्भ, कुश और रेती की वेदी बनायी । मथनकाष्ठ की अरणी घिस कर अग्नि प्रज्वलित की और समिधा के दक्षिण ओर निम्नलिखित सात वस्तुएं रखीं
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मधु, घी
१ – सकहूं', २ वक्कल, ३ ठाणं ४ सिज्जा, भंड, ५ कमंडलु, ६ दंड, ७ आत्मा ( स्वयं दक्षिण ओर बैठा था ) । उसके बाद और चावल से आहुति दी और चरु बलि तैयार की | चरु से वैश्वदेव की पूजा की, फिर अतिथि की पूजा की और उसके पश्चात् आहार किया ।
इस प्रकार दूसरे पारणा के समय दक्षिण दिशा और उसके लोकपाल यम, तीसरे पारणा के समय पश्चिम दिशा और उसके लोकपाल वरुण; और चौथे पारणा के समय उत्तर दिशा और उसके लोकपाल वैश्रमण की पूजा आदि की ।
१ - - - तत्समय प्रसिद्ध उपकरण विशेषः - भगवतीसूत्र सटीक पत्र
९५६ ।
२ – ज्योतिः स्थानं वही ।
३ - शय्योपकरणं - वही ।
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