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तीर्थंकर महावीर सोमशर्मा से ऐसा सुनकर शंख मुनि उस गली में चले। उनके चरण के स्पर्श के प्रभाव से गली बर्फ-जैसी ठंडी हो गयी । इर्यासमिति पूर्वक धीरे-धीरे मुनि को चलता देखकर पुरोहित को बड़ा आश्चर्य हुआ। ___ वह भी घर से निकला और गली में चला। गली को बर्फ-जैसी ठंडी पाकर उसे अपने कुकर्म पर पश्चाताप होने लगा और वह विचारने लगा"मैं कितना पापी हूँ कि इस अग्नि-सरीखी उत्पत्त गली में चलने के लिए मैंने इस महात्मा को कहा। यह निश्चय ही कोई बड़े महात्मा मालूम होते हैं।"
ऐसा विचार करता-करता वह सोमशर्मा शंख मुनि के चरणों में गिर पड़ा । शंख मुनि ने उसे उपदेश दिया और वह सोमशर्मा भी साधु हो गया।
शिवराजर्षि स्थानांग-सूत्र में आठ राजाओं के नाम आते हैं, जिन्होंने भगवान् महावीर से दीक्षा ले ली और साधु हो गये ।' उन आठ राजाओं के नामों में एक राजा शिवराजर्षि आता है। इस पर टीका करते हुए नवांगी वृत्तिकारक अभयदेव सूरि ने लिखा है:
१-उत्तराध्ययन नेमिचन्द्रसूरि की टीका सहित, अ० १२, पत्र १७३-१ ।
२-समणेणं भगवता महावीरेणं अट्ठ रायाणो मुंडे भवेत्ता श्रागारातो अणगारितं पव्वाविता, तं०-वीरंगय, वीरजसे, संजय एणिजते य रायरिसी । सेय सिवे उदायणे [ तह संखे कासिवद्धणे ]
- स्थानांग सूत्र, सटीक, स्थान ८, सूत्र ६२१ पत्र (उत्तरार्द्ध ) ४३०-२।
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